Friday, 23 July 2021

राष्ट्रीय प्रसारण दिवस पर विशेष

📻 🎊राष्ट्रीय प्रसारण दिवस पर विशेष🎊 📻

अपन बात शुरू करते हैं  देश में रेडियो की शुरुआत से। सबसे पहले आज राष्ट्रीय प्रसारण दिवस के शुभ अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं! 


आज देश में रेडियो प्रसारण को आज 98 साल पूरे हो गए। आज ही के दिन 23 जुलाई 1927 को तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने बॉम्बे प्रसारण केन्द्र का उद्घाटन कर इसकी शुरुआत करते हुए मान्यता दी थी। जबकि इससे पहले देश में रेडियो प्रसारण की पहली शुरुआत जून 1923 को रेडियो क्लब मुंबई द्वारा किया गया था। इंडियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सर्विस को 8 जून 1936 को 'आल इंडिया रेडियो' का नाम दिया गया। आजादी के पहले तक भारत में कुल नौ रेडियो स्टेशन थे। देश विभाजन के बाद तीन पाकिस्तान में चले गए। आल इंडिया रेडियो 470 घरेलू प्रसारण सेवा केन्द्रों के साथ 92% क्षेत्रफल तथा 99.19 आबादी तक देश के 23 भाषाओं और 179 बोलियों में सूचना, शिक्षा और मनोरंजन की सेवाएं दे रहा है। यह शुरुआत से ही अपने उद्देश्य :बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय" का अनुसरण कर रहा है। देश में तकनीकी रूप से तीन प्रकार के रेडियो जिनमें मीडियम वेव, शार्ट वेव और एफ एम प्रसारण केंद्र काम कर रहे हैं। वर्तमान में इंटरनेट या डिजिटल रेडियो का भी प्रचालन काफी तेजी से बढ़ रहा है। उदारीकरण के बाद निजी रेडियो चैनलों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। इसके साथ-साथ भारत में सामुदायिक रेडियो का भी विकास हो रहा है। मई 2020 तक देश में 290 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों का परिचालन हो रहा है।


Happy National Broadcasting Day!

Radio started in India

It is National Broadcasting Day today.

Wishing you all a very Happy National Broadcasting Day!

Radio broadcasting in India completes 98 years today. On this day, 23 July 1927, the then Viceroy Lord Irwin inaugurated the Bombay Broadcasting Center and recognized it by starting it. Whereas before this the first start of radio broadcasting in the country was done in June 1923 by Radio Club Mumbai. The Indian State Broadcasting Service was renamed 'All India Radio' on 8 June 1936. Before independence, there were a total of nine radio stations in India. After the partition of the country, three migrated to Pakistan. All India Radio is providing information, education and entertainment services in 23 languages and 179 dialects of the country covering 92% of the area and 99.19 population of the country with 470 domestic broadcasting service centers. It has been following its objective "Bahujan Hitay, Bahujan Sukhay" from the very beginning. Technically there are three types of radios in the country which are medium wave, short wave and FM broadcasting stations. At present the operation of internet or digital radio is also increasing very fast. After liberalization the number of private radio channels increased significantly. Along with this, community radio is also developing in India. As of May 2020, there are 290 community radio stations operating in the country.


Saturday, 30 May 2020

हिंदी पत्रकारिता और डिजिटल संचार



हिंदी पत्रकारिता और डिजिटल संचार
                                                                                                          डॉ. शम्भू शरण गुप्त
फ़ैकल्टी, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
टेक्निया इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज़, नई दिल्ली

हिंदी पत्रकारिता और हिंदी सेवा में उदन्त मार्तंड का उद्भव न सिर्फ हिंदी पत्रकारिता बल्कि हिंदुस्तान को स्वाधीनता स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों और आम जन-मानस के लिए भी प्रेरणा का एक बड़ा स्त्रोत रहा है । आज हिंदी पत्रकारिता और स्वतंत्रता आंदोलन के क्षेत्र में इसके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है । हालांकि उदन्त मार्तंड समाचार पत्र के प्रकाशन की अवधि बहुत अधिक नहीं थी; बावजूद इसके इस हिंदी भाषी समाचार पत्र ने भारतीय पत्रकारिता की दुनिया में जो अलख जगाया था, आज उसकी लौ सम्पूर्ण विश्व को आलोकित कर रही है । हिंदी पत्रकारिता का सूर्य 'उदन्त मार्तंड' 30 मई 1926 को कलकत्ता से उदित होकर हिंदी जगत को जागृत किया । परिणामस्वरूप हिंदुस्तान की लोक मानस को अभिव्यक्ति की एक नई दिशा मिली । समय के साथ हिंदी पत्रकारिता के रूप-स्वरूप में अनेक बदलाव आए । हिंदी पत्र-पत्रिकाओं की संख्या और उनके प्रसार में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई । इन्टरनेट ने हिंदी पत्रकारिता का और विस्तार किया । स्थिति यह है कि अब हिंदी अमेरिका, रूस, आस्ट्रेलिया, कनाडा, हंगरी, जापान और चीन सहित दुनिया के अनेक देशों में हिंदुस्तान और हिंदी को जानने और समझने के लिए पढ़ी और पढ़ाई जा रही है । जैसाकि आप सभी जानते हैं दुनिया में बड़े-बड़े परिवर्तन हुए हैं – बर्लिन की दीवार टूटी, विश्व व्यापार संगठन बना, ऑनलाइन व्यापार शुरू हुआ, संचार क्रांति आयी और विश्व एक गांव जैसा सदृश्य हो गया । ठीक उसी प्रकार भारत की हिंदी पत्रकारिता अपना डिजिटलीकरण कर वैश्विक स्वरूप धारण कर लिया । डिजिटल दौर में हिंदी पत्रकारिता भारत की संस्कृति, दर्शन और यथार्थ नव-जागरण को वैश्विक धरातल से जोड़ रही है । इस तरह से हिंदी पत्रकारिता एक साथ दो पाठक समाज का निर्माण कर रही है । एक पाठक समाज वह है, जिसे हिंदी पत्रकारिता ने विरासत में ग्रहण किया है, अर्थात हिंदी भाषी क्षेत्र के सदस्य के रूप में पैदा हुई है, जी रही है और हिंदी भाषा में कार्य कर रही है । दूसरा पाठक समाज वह है, जिसका निर्माण हिंदी पत्रकारिता करना चाहती है, अर्थात अहिंदी राज्य-राष्ट्र में रहने वाले हिंदी प्रेमी पाठक समाज । नई टेक्नॉलॉजी के इस युग में डिजिटल फॉर्म इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वर्तमान जन-जीवन रूढ़ियों और संकीर्णताओं से मुक्त समाज की अवधारणा दी है । आज का जमाना 'हाई टेक्नॉलॉजी और हाई स्पीड' का है । आज नई टेक्नॉलॉजी मनुष्य और मानव समाज के व्यक्तिगत, शैक्षणिक, शोध, संस्थागत, व्यसायिक और जीवन-मूल्य संदर्भ हर एक के जीवन की कसौटी बन गया है । वर्तमान समाज की दिनचर्या और गतिशीलता दिनोंदिन उच्चतर और सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित होती जा रही है । इन दिनों गांव से लेकर शहर तक और गरीब से लेकर अमीर तक बहुतायत के हाथों में स्मार्ट मोबाइल फोन दिखाई देने लगा है । देश और समाज की हर छोटी-बड़ी सूचनाएं सबसे पहले हम मोबाइल के द्वारा प्राप्त कर रहे हैं । राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खबरों को विस्तार से जानने और पढ़ने के लिए समाचार पत्रों और चैनलों की ओर मुखातिब होते हैं । ये दोनों सूचना और संचार के फॉर्म अर्थात समाचार पत्र और टीवी/वीडियो दोनों ही हमारे मोबाइल फोन में इंटरनेट के सहारे हर समय और हर जगह उपलब्ध है । अर्थात इंटरनेटमोबाइल फोनमोबाइल एप्लिकेशनटैबलेटलैपटॉप और अन्य आधुनिक उपकरणों के विकास के कारण आज की हिंदी पत्रकारिता डिजिटल हो चुकी है । कंप्यूटर, इंटरनेट और तकनीक ने मीडिया संस्थाओं के साथ आम आदमी को पत्रकारिता के क्षेत्र में विनियोग करने की अप्रतीम सुविधा प्रदान किया है । हिंदी पत्रकारिता का स्वरूप बदलने के साथ पत्रकारों को बतौर तकनीकी रूप से दक्ष होना पड़ा है । मुख्यालय से दूर का पत्रकार आज का न सिर्फ खबर का रिपोर्टिंग कर रहा है, समाचार को कंपोजिंग कर उसे संपादित कर रहा है । मोबाइल के माध्यम से फोटो भी ले रहा है और उसे संपादित कर उसका कैप्शन लगाकर इंटरनेट के माध्यम से मुख्यालय को भेज रहा है ।
            आज दुनिया का प्रत्येक वह व्यक्ति जो कंप्यूटर और इंटरनेट सेवी है वह हिंदी पत्रकारिता के माध्यम से हिंदी भाषा में संपूर्ण दुनिया के साथ जीवित संवाद स्थापित कर रहा है । भारत में इंटरनेट प्रयोग का बढ़ता सूचकांक हिंदी पत्रकारिता को डिजिटलीकरण की ओर बढ़ना स्वाभाविक है । इंटरनेट का विकास पिछले 2002 से होना शुरू हुआ और लगभग एक-डेढ़ दशक में वेब और ई-मेल पाठकों तथा मीडिया घरानों की मुख्य धारा के जरूरी अंग बन गए । डिजिटल तकनीक को तेजी से अपनाए जाने से सरकारी कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करने और इसे लागू करने का तरीका पूरी तरह से बदल गया है । प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली, ई-मार्केटप्लेस, भीम ऐप के जरिए डिजिटल भुगतान संबंधी लेन-देन आदि के कारण नए इंटरफेस के जरिए हिंदी भाषा में सरकार की भी सक्रियता बढ़ी है । आज हम डिजिटल हिंदी भाषा का प्रयोग क्षेत्र न केवल भारत है बल्कि यह दुनिया के अनेक देशों में विशेषकर फ़िजी, मारीशस, सूरीनाम, त्रिनिनाद आदि देशों प्रवासी हिंदी भाषियों तथा वहाँ के अन्य नागरिकों द्वारा बोली जाती है । दुनिया का पहला डिजिटल फॉर्म इंटरनेट पर सबसे पहली ऑनलाइन हिंदी साहित्यिक पत्रिका 'भारत दर्शन' का प्रकाशन 1996 में भारत से नहीं बल्कि न्यूजीलैंड से प्रकाशित हुआ । वहीं आगरा शहर के होनहार युवा अनुज अग्रवाल पिछले 9 वर्षों से आस्ट्रेलिया में 'हिंदी गौरव' नाम का समाचार पत्र सफलता पूर्वक संपादित कर रहे हैं । इसे यू ट्यूब पर भी हिंदी भाषा में अनेक लोगों का साक्षात्कार भी देखा जा सकता है । इसलिए देश और विदेश से प्रकाशित होने वाली प्रत्येक हिंदी भाषी समाचार पत्र और पत्रिकाओं को ऑनलाइन डिजिटल फॉर्म में भी न सिर्फ देखा जा रहा बल्कि उसे पढ़ कर प्रतिक्रिया भी दिया जा रहा है । इसके अलावा न सिर्फ समाचार पत्र और पत्रिकाएं बल्कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया अर्थात रेडियो और टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाले खबरों को भी डिजिटल स्वरूप दिया जा रहा है । सिनेमा भी इससे अछूता नहीं है । समकालीन पत्रकारिता की महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि उस समय पूर्णतः मिशनरी पत्रकारिता होती थी । आज की तरह किसी भी तरह का कोई व्यवसायिकता का कोई लोग-लपेट नहीं होता था । एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हिंदी पत्रकारिता के सहारे ही खड़ी हिंदी बोली का विकास हुआ और हिंदी का एक नया गद्य स्वरूप सामने आया। हिंदी पत्रकारिता और हिंदी गद्य की चर्चा करे तो हिंदी पत्रकारिता और गद्य साहित्य के मर्मज्ञ विभूति भारतेन्दु हरिशचन्द्र का 'हरिश्चंद्र चंद्रिका', और बाबू बालमुकुंद गुप्त के 'शिवशंभू के चिट्ठे' को जरूर याद किया जाता है । इस संदर्भ में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं कि "हिंदी गद्य का ठीक परिष्कृत रूप पहले-पहले इसी चंद्रिका में प्रकट हुआ । जिस प्यारी हिंदी को देश ने अपनी विभूति समझा, जिसको जनता ने उत्कंठापूर्वक दौड़कर अपनाया, उसका दर्शन इसी पत्रिका में हुआ । भारतेन्दु ने नई सुधरी हिंदी का उदय इसी समय से माना है।" वहीं बाबू बालमुकुंद गुप्त के संदर्भ में गुप्तजी के "शिवशंभु के चिट्ठे' जिसे पॉलिटिकल एस्से का नाम दिया जाता है, गद्य का श्रेष्ठ उदाहरण है जिस पर टिप्पणी करते हुए भारतेन्दु युगीन साहित्य के मर्मज्ञ समीक्षक डॉ. रामविलाश शर्मा ने लिखा है कि "ये व्यंग्यपूर्ण निबंध भारतेन्दु और प्रतापनारायन मिश्र की परंपरा का अनुकरण करके लिखे गए हैं । भाँगड़ी शिवशंभु के दिवास्वप्नों के बहाने गुप्तजी के विदेशी शासन पर खूब फब्तियाँ कसी हैं । गुप्तजी ने 'भारतमित्र' में भाषा की अनस्थिरता को लेकर 1906 में जो दस लेख लिखें उससे आलोचना के क्षेत्र में वाद-विवाद और संवाद का प्रारम्भ माना जाता है। 'भारतमित्र' की यह आठ वर्षों की अवधि उसका स्वर्णयुग था । हिंदुस्तान की राष्ट्रीय चेतना, जन-संवेदना, लोक-भावना, जन-संस्कृति को ठीक-ठीक पढ़ने और समझने के लिए हिंदी समाचार पत्रों को देखना और पढ़ना बहुत ही सहायक है । सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के साथ प्रेरणा, आत्मविश्वास, राष्ट्रीय एकता और संस्कृतियों के प्रचार-प्रसार तथा इसके एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी और आगे की पीढ़ियों को सिंचित करने का एक बड़ा माध्यम रहा है हिंदी पत्रकारिता। गुलाम भारत में हिंदी पत्रकारिता ने जिस तरह से स्वतंत्रता सेनानियों को सूचना देने और अंग्रेजों के खिलाफ और भारत को स्वाधीन करने के लिए जिस प्रकार से करती थी वह आज के तमाम सोशल मीडिया माध्यम से कहीं कम तेज नहीं थी । आज हम जिसे हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाते हैं वह उस समय की स्वाधीनता की पत्रकारिता थी । पत्रकार अपने समकालीन समाज का शिक्षक, सेवक और सरकार का आलोचक होता है । ये दोनों कार्य हिंदी पट्टी की पत्रकार और हिंदी पत्रकारिता से कोई सीख सकता है । उस समय का पत्रकार खुद जलकर दूसरों को मार्ग दर्शाता था, सूचना का संकलन, प्रकाशन और वितरण करता था । आज हम जिस हिंदुस्तान की विशाल लोकतंत्र के नागरिक हैं उसकी मजबूत आधारशिला के निर्माण में हिंदी पत्रकारिता की महत्त्वपूर्ण भूमिका है । 

Saturday, 10 November 2018

हिंदी का विकास और वैश्विक पटल


हिंदी का विकास और वैश्विक पटल
डॉ. शम्भू शरण गुप्त, 
असिस्टेंट प्रोफेसर, 
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, 
टेक्निया इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज़
(संबद्ध गुरु गोबिन्द सिंह इंद्र प्रस्थ विश्वविद्यालय)
मधुबन चौक, रोहिणी, नई दिल्ली



वैश्विक पटल पर हिंदी भाषा के विकास की पड़ताल करें तो 20वीं सदी के अंतिम दो दशकों में अन्य किसी भाषा की अपेक्षा हिंदी का वैश्विक विकास बहुत तेजी से हुआ है। प्रवासी भारतीय व अन्य जो हिंदी भाषा प्रेमी हैं, कभी एक-एक रचना के लिए लालायित रहते थे। वे सूचना संचार तकनीक के माध्यम से आज पूरा का पूरा महाग्रंथ न सिर्फ पढ़ रहे हैं बल्कि उस पर अपने सुझाव के साथ-साथ अपने विचारों से भी अवगत कराते हुए हिंदी के विकास का वैश्विक पटल एहसास भी करा रहे हैं। हिंदी का विकास हमारी रुचि और सजगता के साथ जुड़ा है। ऑनलाइन माध्यमों वेबसाइट्स, ब्लॉग, एप्लीकेशन के साथ-साथ यू ट्यूब चैनल पर अतीत से लेकर वर्तमान के हिंदी साहित्य को देखा, पढ़ा और सुना जा रहा है। दुनिया के अनेक राष्ट्रों अमेरिका, रूस, यूनाइटेड किंग्डम, इंग्लैंड, नेपाल, चीन, रूस, साऊथ अफ्रीका, त्रिनिनाद टू बैको और मारिशस आदि देशों में इसके महत्त्व को स्वीकारी जा रही है। भारत की जनसंख्या 126 करोड़ है, जबकि विकसित देश जापान की 12.6 करोड़, जर्मनी की 8.2 करोड़ है, फ्रांस की 6.4 करोड़ है, साउथ कोरिया की 4.9 करोड़ है। इन देशों का विकास अंग्रेजी में नहीं बल्कि उनकी अपनी जनभाषाओं क्रमशः जापानी, जर्मनी, फ्रेंच और कोरियन के द्वारा हुआ है। आज भले ही निजी स्वार्थों जैसे बाजार, सिनेमा, मीडिया और अपनी रुचि के आधार पर हिंदी का स्थान वैश्विक पटल पर एक नए व विकासपरक आयामों को जन्म दे रही है, जो भारतीयों व हिंदी प्रेमियों के लिए किसी गौरव से कम नहीं है। डॉ. अनिता ठक्कर की राष्ट्रभाषामें अक्टूबर 2015 के अंक में सूचना प्रौद्योगिकी में हिंदी नामक आलेख में उल्लिखित निम्न पंक्तियाँ हिंदी के विकास में सार्थक है। – ‘अमेरिका से भारत दौरे पर आए माइक्रोसॉफ्ट के प्रमुख बिल गेट्स ने मुंबई में कहा था कि भारत को हिंदी सॉफ्टवेयर की जरूरत है। यह जरूरत पूरी करने के लिए माइक्रोसॉफ्ट तैयार है। एक वर्ष के अंदर ही सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि अन्य और भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर बाजार में आया और जिसमें पहली बार हिंदी को कंप्यूटर तकनीक के साथ जोड़ते हुए हिंदी के महत्त्व को वैश्विक पटल पर स्वीकार किया गया।   
वैश्विक पटल पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा भी हिंदी के विकास में सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। हिंदी के विकास के लिए विश्वविद्यालय श्रीलंका, हंगरी,  जापान, बेल्जियम, इटली, जर्मनी, रूस, चीन और मारिशस आदि देशों के विश्वविद्यालय के साथ शैक्षणिक अनुबंध भी किया है। इस विश्वविद्यालय में विदेशी छात्र-छात्राओं के लिए हिंदी भाषा में डिप्लोमा से लेकर पीएच.डी. पाठ्यक्रम संचालित है। वर्ष 2016 के प्रारंभ तक इस विश्वविद्यालय से ग्यारह देशों के कुल 131 जिनमें 86 महिला और 45 पुरुष विद्यार्थियों को हिंदी भाषा की विभिन्न पाठ्यक्रमों में अध्ययन कर चुके हैं। आज कंप्यूटर, लैपटाप, स्मार्टवाच, स्मार्टफोन, टैबलेट और मोबाइल आदि तकनीक से जुड़े उपकरणों की मानव जीवन में निरंतर बढ़ती पैठ और इसे पूर्णतः व्यावहारिक स्तर पर लाने के लिए तकनीकी यंत्रों की भाषा में हिंदी का एक स्थान सुनिश्चित हो चुका है। इससे आज हिंदी देश और काल की सीमा से परे वैश्विक पटल को आत्मसात कर चुका है। जिस प्रकार से यूनिकोड ने हिंदी भाषा को समूची दुनिया तक प्रसारित करने में मदद कर रहा है, ठीक उसी प्रकार सरकार और हिंदी प्रेमियों को हिंदी के विकास के लिए अनवरत साधना करते रहने की जरूरत है। वैश्वीकरण ने हिंदी को बाजार की भाषा का रूप दे दिया। बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादों को बाजार में बेचने के लिए मीडिया में विज्ञापन, प्रचार आदि के लिए हिंदी का प्रयोग करती है लेकिन इससे हिंदी भाषा की सुंदरता और स्वाभाविकता विकृत हो रही है जो किसी भी रूप में हिंदी के लिए हितकर नहीं है। जबकि वहीं कंपनियां अपने सभी कार्यालयीय कार्यों को भारत के ही हिंदी भाषा-भाषी प्रेमियों से अंग्रेजी में संपादित कराती हैं। बाजार की भाषा हिंदी और दफ्तर की भाषा अंग्रेजी है। आखिर ऐसा क्यों? बाजारवाद के युग में हिंदी भाषा पूरी दुनिया की एक महत्त्वपूर्ण भाषा होने के नाते नहीं बल्कि बहुराष्ट्रीय कपनियों के लिए भारत में इतने बड़े पैमाने पर उपभोक्ता होने के नाते हिंदी बाजार की भाषा बनी हुई है। क्या हमारा देश भारत और इसके नागरिक और हिंदी सिर्फ बाजार की भाषा के लिए है, यह एक यक्ष प्रश्न है। इस संदर्भ में चेनाराम वेबमीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्यमें लिखते हैं कि – ‘भारत तक पहुंचने के लिए बड़ी से बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भी हिंदी और भारतीय भाषाओं का सहारा लेनी पड़ी है। क्योंकि भारत एक ऐसा राष्ट्र है जिसमें बाजार की प्रचुरता है और उत्पाद की बिक्री का आश्रय स्थल भी है और उस आश्रय स्थल में हिंदी भाषा से ही शरण मिलती है। आगे लिखते हैं कि बाजारीकरण ने आर्थिक उदारीकरण, सूचना क्रांति तथा जीवनशैली के वैश्वीकरण की स्थितियों से हिंदी भाषा की अभिव्यक्ति कौशल का विकास ही हुआ है। अभिव्यक्ति कौशल के विकास का अर्थ भाषा का विकास ही है।
भाषा के बारे में प्रख्यात साहित्य समालोचक टेरी ईगलटन कहते हैं कि भाषा सबसे पहले अन्य लोगों के साथ आपके अपने होने का माध्यम है। काम करा ले जाने का माध्यम वह उसके बाद है। भाषा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए प्रो. चन्द्रकला पाडिया कहती हैं कि – ‘राष्ट्र निर्माण में भाषा की क्या भूमिका हो सकती है। वह हमें चीन, जापान, कोरिया जैसे देशों से सीखना चाहिए।आज सूचना प्रौद्योगिकी के बहुत तकनीक जैसे याहू, गूगल, इंटरनेट एक्सप्लोरर, नेटस्केप, मोजिला, ओपेरा आदि इंटरनेट ब्राउज़र हिंदी में कार्य कर रहे हैं। विज्ञापन, वेब, सिनेमा, संगीत और बाजार के क्षेत्र में हिंदी भाषा का प्रयोग से इसका विकास स्पष्ट होता है। संयुक्त अरब अमीरात का हम एफ-एम’, जर्मनी का डॉयचे वेले, जापान का एनएचके वर्ल्ड, चीन का चाइना रेडियो, अंतर्राष्ट्रीय बीबीसी की भाषा हिंदी है। हिंदी इतने लोगों के साथ-साथ यह मीडिया की भी जीवन रेखा है। मीडिया के लिए हिंदी भाषा बाजार, विज्ञापन और व्यवसाय की भाषा है। हिंदी की सामर्थ्यता के बारे में बी.बी.सी. के भारत स्थित पूर्व प्रतिनिधि मार्क टूली ने अप्रैल 26, 2009 को प्रभात खबर में लिखते हैं कि - हिंदी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है, जबकि भारत में बमुश्किल से पांच फीसद लोग अंग्रेजी समझते हैं। यही पांच फीसद लोग बाकी भाषा-भाषियों पर अपना प्रभुत्व जमाए हुए हैं। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं पर अंग्रेजी के इस दबदबे का कारण गुलाम मानसिकता तो है ही, उससे भी ज्यादा भारतीय विचार को लगातार दबाना और चंद कुलीनों के आधिपत्य को बरकरार रखना है। यदि हम अपने जन्म-जन्मांतर से आगे और भारत व उसके अस्मिता की सुरक्षा करने की बात करे तो हमें अपनी लघु मानसिकता और तुच्छ लोभ से आगे निकलते हुए हिंदी को वैश्विक पटल पर बरकरार रखने के लिए तत्पर रहना होगा तभी हम एक नए और विकसित भारत का नव-निर्माण कर सकते हैं जिसमें हिंदी का स्थान वैश्विक पटल पर सर्वोच्च स्थान पर होगा।  


संदर्भ ग्रंथ:
  •  चेनाराम, (2013). भूमंडलीकरण के दौर में संचार माध्यम और हिंदी भाषा. मिश्रा. मनीष कुमार. मन्ना, अनीता. और सिंह, आर. बी. (संपा.), वेबमीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य (55-64). नई दिल्ली: हिन्द-युग्म.
  •  ईगलटन, टेरी. (कृष्ण,प्रणय. अनु.). (2014). इंटरनेट ने हम सब की गति धीमी कर दी है. हरिवंश, (प्र. संपा.), प्रभात खबर (दीपावली विशेषांक 2014) (16). राँची: प्रभात खबर, कोकर.   
  • उमरे, करुणा. (2015, अक्टूबर). मीडिया में हिंदी. राष्ट्रभाषा.
  • त्रिवेणी धारा (गृह पत्रिका).
  • योजना 2007
  • hindivishwa.org



गोरखपुर से प्रकाशित हिंदी दैनिक समाचार पत्र "यूनिवर्स रिपोर्टर" में प्रकाशित आलेख "हिंदी का विकास और वैश्विक पटल"


Wednesday, 27 April 2016

Social media and Public Relations

Book Review 

Shambhoo Sharan Gupta
Ph. D. Research Scholar - Mass Communication 

I read the edited book "The global landscape of web media and Hindi” (ISBN: 978-93-81694-43-4). In this book, social media, web media and new media, includes articles written by various scholars. This book will help to me my research topic and after this programme I will be meant to familiarize aspiring my research subject with basic tools of conducting action oriented social science research. I will be understood to wide range of conceptual issues, and quantitative and qualitative methods of conducting social science research. New approaches in research like visual and ethnographic will also be dealt with. In order to make the course more practical, experience base learning will be emphasized as course methodology.
Social media is providing democracy mouth publicity. From business, politics, youth, seiner citizens, ranging from the common man from elite class, from social workers to the government all have adopted social media as integral. Public Relations is a human science, and information is the core element. Since the time humans have been communicating messages. Through various forms even as the PR mode is reached. Social Media today small-large companies, political parties, politicians and actors are adopting social media to stay connected to them.
Element in public relations contacts or relationships and contacts and relationships are playing an important role in the expansion of new media. In the absence of New Media PR may not be possible to act faster. PR of their social and vocational role does business communication management. Today, business is a social activity. Using social media as a PR tool to maintain your credibility, image building and targeted peoples/customers and to stay competitive in the market is being Public Relations and media both are closely linked. Information is incomplete without the media. Both are activities that work on a large scale. Give notice of its products, quality and excellence suggestive, to induce consumers and their responses, expand markets, increase business, competitive, company to clarify methodology, rules-laws and changes that occur very purpose of reporting are foundation of corporate public relations.
Public Relations tools such as social media, Human Resources and Workplace Solutions Company Rigs about the report’s survey indicates that 83 percent of Indian firms are convinced that this strategy cannot be successful without social media marketing activity; globally this figure is 74 percent. So that, Social media such as public relations tool, and allow us to leverage best platforms.

Tuesday, 3 November 2015

कार्पोरेट जनसंपर्क का परिदृश्य और सूचना संचार प्रौद्योगिकी 
 शम्भू शरण गुप्त
 शोध अध्येता  – जनसंचार
संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा






शोध सार
वर्तमान सदी में सूचना संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बड़ी तेजी के साथ विकास हुआ है। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर, एंड्रायड, इंटरनेट एवं फाइबर आप्टिकल केबल सूचना संचार प्रौद्योगिकी के प्रमुख अवयव हैं। सूचना संचार प्रौद्यौगिकी के ये अवयव बड़े शहरों के लोगों को जोड़ चुके हैं तथा अब ये छोटे-छोटे कस्बों और गांवों को जोड़ने में लगे हुए हैं। यानि इसका संबंध आम जनता से है। यदि हम किसी कंपनी, ग्राहक और उत्पाद के बारे में सूचना संचार प्रौद्यौगिकी की उपयोगिता की परिचर्चा करते हैं तो कार्पोरेट जनसंपर्क के परिदृश्य पर चर्चा होना लाजिमी है। कंपनी के विभिन्न कार्यों को संपादित करने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आंतरिक और बाह्य जनता (Publics) से लगातार संपर्क बनाए रखना पड़ता है। जैसे किसी उत्पाद का संबंध प्रत्यक्ष रूप से ग्राहक से होता है और ग्राहक आम जनता ही है तथा शुरू से वस्तु (उत्पाद) एवं उपभोक्ता का संबंध गर्भ और नाल की तरह है। आज उत्पाद और कंपनियों की संख्या में भारी वृद्धि होने से प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ चुकी है कि कंपनियां वस्तु उत्पादन, वितरण और विभिन्न प्रकार की संचार प्रक्रिया के लिए कार्पोरेट जनसंपर्क नामक इकाई की सेवाएं ले रही हैं। जिस प्रकार सूचना मानव जीवन के लिए की महत्त्वपूर्ण है, उसी तरह कंपनियों की संचार संबंधी क्रिया-प्रक्रिया का काम करने वाली एक महत्त्वपूर्ण इकाई कार्पोरेट जनसंपर्क है। “सोशल मीडिया के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि – सोशल मीडिया के 3D (Democratic, Demography और Demand) उपभोक्ता और कंपनी दोनों के लिए एक उत्प्रेरक का कार्य कर रहा है।”[1] सोशल मीडिया पर जन-शक्ति का प्रत्यक्ष लाभ कार्पोरेट जनसंपर्क के माध्यम से कंपनियां ही उठा रही हैं। क्योंकि जनसंपर्क में दो तत्व जन के लिए सूचना और जन से संपर्क सदैव रहता है। सूचना संचार प्रौद्यौगिकी तकनीक और सोशल मीडिया की जन-शक्ति कार्पोरेट जनसंपर्क को व्यापक बनाने में मदद कर रहा है। लेकिन यह एक दीर्घकालिक कार्य है।       
किसी भी पब्लिक (Public) को सूचना देना या उसके अभिमत को जानना कार्पोरेट जनसंपर्क का कार्य होता है। रेडियो, सिनेमा, पत्र-पत्रिकाएँ, टेलीविजन, स्मार्ट मोबाइल फोन, इंटरनेट, न्यू मीडिया और सोशल मीडिया आदि जनसंपर्क के उपकरण हैं। इनके मजबूत होने के साथ कार्पोरेट जनसंपर्क की शक्ति और क्षमता में भी बदलाव हुए हैं। आज व्यवसाय और व्यापार, शिक्षा-व्यवस्था, लोकतंत्र, उद्योग, फैशन, यातायात और पर्यटन उद्योग आदि क्षेत्रों में सूचना संचार प्रौद्यौगिकी आधारित कार्पोरेट जनसंपर्कीय प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जा रहा है।
सूचना संचार प्रौद्योगिकी से आशय:
सूचना संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का तात्पर्य सूचना-संप्रेषण की तकनीकों के समुच्चय से है। सूचना प्रौद्योगिकी के आधुनिक युग का सूत्रपात 19वीं शताब्दी के टेलीग्राफ के आविष्कार के साथ हो गया था। ढ़ोल पीट-पीट कर और कबूतर उड़ाकर संदेश भेजने के पुराने पारंपरिक तरीकों से शुरू हुआ सूचना संप्रेषण का काम आज अपने विकास के चरम शिखर पर पहुँच चुका है। रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेलीफोन, सेल्यूलर फोन, फैक्स, कंप्यूटर, दूरसंचार उपग्रह, टेलीविजन, इंटरनेट, विडियो फोन, मल्टीमीडिया इत्यादि ने इस प्रौद्योगिकी को क्रांतिकारी स्वरूप प्रदान किया है। इन सबमें कंप्यूटर की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। कंप्यूटर के बिना सूचना प्रौद्योगिकी के वर्तमान स्वरूप की कल्पना बेमानी है। आधुनिक युग में सामाजिक परिवर्तनों का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक प्रोद्योगिकी ही है। सूचना संचार प्रौद्योगिकी एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ प्रतिदिन नए आविष्कार होते रहते हैं। संचार माध्यम सूचना प्रौद्योगिकी से शक्ति प्राप्त कर समाज को सूचनाएं, मनोरंजन देने के साथ उन्हें मजबूती भी प्रदान कर रहा है।
अमेरिकी रिपोर्ट में सूचना प्रौद्योगिकी इस प्रकार परिभाषित है - सूचना प्रौद्योगिकी का अर्थ है, सूचना का एकत्रीकरण, भंडारण, प्रोसेसिंग, प्रसार और प्रयोग। यह केवल हार्डवेयर अथवा सॉफ़्टवेयर तक ही सीमित नहीं है। बल्कि इस प्रौद्योगिकी के लिए मनुष्य की महत्ता और उसके द्वारा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करना, इन विकल्पों के निर्माण में निहित मूल्य, यह निर्णय लेने के लिए प्रयुक्त मानदंड है कि क्या मानव इस प्रौद्योगिकी को नियंत्रित कर रहा है। और इससे उसका ज्ञान संवर्धन रहा है।
यूनेस्को के अनुसार सूचना प्रौद्योगिकी की परिभाषा - सूचना प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकीय और इंजीनियरिंग विषय है। सूचना की प्रोसेसिंग और उसके अनुप्रयोग की प्रबंध तकनीकें है। कंप्यूटर, मानव तथा मशीन के साथ अंत:क्रिया एवं संबद्ध सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक विषय।
सूचना संचार प्रौद्योगिकी का अभिप्राय यह है कि “विशेष रूप से दूरसंचार, संगणन (कम्प्यूटिंग) और प्रसारण के बीच के विभाजन प्रोद्योगिकी के स्तर पर ख़त्म हो चुके हैं और इसे डिजिटल प्रौद्योगिकी ने संभव बनाया है। इस तरह, पहले जो संचार के परस्पर भिन्न रूप थे, उनके वितरण और प्रेषण परस्पर मिल गए हैं और अब उनका एक ही रूप तथा प्रारूप होना संभव है। हालांकि यह संचार प्रौद्योगिकी की एक महत्त्वपूर्ण तथा संभावित रूप से क्रांतिकारी विशेषता है, फिर भी परस्पर जुड़ाव या आपसी मिलन का यह पहलू अब तक कम ही प्रकट हुआ है। इससे ज्यादा खुलकर उन विशाल विश्व कंपनियों का आपसी मिलन सामने आया है जो उस सांस्कृतिक सामग्री के अधिकांश हिस्से का उत्पादन तथा आपूर्ति करती हैं और जो उसे उस प्रतीकात्मक परिदृश्य को बनाती है, जिसमें हममें से ज्यादातर लोग बसते हैं।”[2]
कार्पोरेट जनसंपर्क:
            वर्तमान सूचना और मीडिया क्रांति के युग में विभिन्न तरह की सूचनाओं का प्रबंधन एक चुनौती भरा कार्य है। सूचनाओं को विभिन्न तकनीकी माध्यमों के सहारे विशिष्ट जनता तक पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है। इसी उद्देश्य से कार्पोरेट संस्थानों में कार्पोरेट जनसंपर्क जैसे बहुआयामी विभाग की स्थापना की गई। कार्पोरेट जनसंपर्क सूचना का व्यवस्थित विज्ञान है और सूचनाओं को त्वरित गति से संकलित, व्यवस्थित करने और उसे वैश्विक स्वरूप देने में सूचना संचार प्रौद्यौगिकी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
आज यह विभाग सूचना प्रबंधन, छवि निर्माण, विपणन सहयोग, मीडिया संबंध और बहुआयामी जनसंपर्क जैसे अन्य बहुत कार्य संपादित कर रहा है। तेजी के साथ विकास कार्यों, प्रबंधन और जनसंपर्क कार्यों से जुड़ा हुआ कार्पोरेट जनसंपर्क एक अग्रणी विषय है। कार्पोरेट जनसंपर्क, परंपरागत जनसंपर्क कार्यों जैसे – सामान्य प्रचार-प्रसार, मीडिया संबंध से भिन्न तथा अपने कार्यशैली को व्यापक बनाते हुए इसके अंतर्गत छवि निर्माण, विपणन सहयोग, ईवेंट मैनेजमेंट, सामुदायिक संबंध, साहसिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेलकूद, वार्षिक रिपोर्ट, अप्रत्यक्ष रूप से उत्पाद या सेवा की प्रोन्नति, सृजन के साथ-साथ सूचना को स्थान, नवाचार गतिविधियां आदि कार्य शामिल हैं। पूंजी, मशीन, उत्पादन और बाजार के साथ-साथ विभिन्न जनता से सकारात्मक संबंध विकसित करना तथा उसका समर्थन प्राप्त कार्पोरेट जनसंपर्क का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है।
कार्पोरेट का शाब्दिक अर्थ है – निगमित, निगम संबंधी तथा राजविधि द्वारा गठित। कार्पोरेट शब्द समूह या संगठन को प्रतिध्वनित करता है जो व्यवसायिक गतिविधियों से जुड़ा होता है। कार्पोरेट शब्द लैटिन शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ होता है – बॉडी।
सूचना संचार प्रौद्यौगिकी और कार्पोरेट जनसंपर्क:
कार्पोरेट जनसंपर्क की परंपरागत और मैनुअल प्रक्रिया को कंप्यूटर, इंटरनेट, इंट्रानेट, एनिमेशन, ग्राफिक्स और मोबाइल के नए-नए एप्लीकेशन के साथ सबकुछ ऑनलाइन हो चुका है। सूचना प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में हुए विकास ने संचार एवं मीडिया क्रांति को जन्म दिया। पवन के. वर्मा की निम्नलिखित बातों से यह स्पष्ट होता है - “सोशल मीडिया में तेजी से हुई वृद्धि, जिसने तत्काल संपर्क किए जाने को वहाँ तक पहुँचा दिया जिसके बारे में एक दशक तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, जो इस अभूतपूर्व क्रांति में एक और आयाम जोड़ती है।”[3]
आज कार्पोरेट जनसंपर्क ने सोशल मीडिया को बड़े पैमाने पर एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं। फेसबुक, टि्वटर और गूगल प्लस जैसी सोशल वेबसाइट्स आम उपभोक्ता के लिए उत्पाद बनाने वाली कंपनियों की भी पहली पसंद है। ये कंपनियां अपने उत्पादों को यूजर्स तक पहुंचाने के लिए सोशल साइट्स का उपयोग कर रही हैं। 400 से अधिक कंपनियां ऐसी हैं जो B2B (Business to Business) और B2C (Business to Consumer) मार्केटिंग कर रही हैं। इनमें फेसबुक, टि्वटर, लिंक्डइन, पिंटरेस्ट और गूगल प्लस आदि सोशल साइट्स हैं। जिस तरह यूजर्स की पहली पसंद फेसबुक है, उसी तरह कंपनियों की भी पहली पसंद फेसबुक है।
उपरोक्त तथ्यों को बाजार के बारे में सूचना उपलब्ध कराने वाली कंपनी निल्सन की एक रिपोर्ट से और स्पष्ट तौर पर समझा जा सकता हैं – “इंटरनेट, मोबाइल टैबलेट तथा एप्लीकेशंस जैसी डिजिटल प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से कंपनियों के कारोबार में 20 अरब डॉलर वृद्धि की संभावना हैं। डिजिटल प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से स्थापित ब्रांडों के व्यवहार में गड़बड़ी आने, प्रचार व उपभोक्ताओं को बेहतर अनुभव प्रदान कर 20 अरब डॉलर बिक्री के अवसर हासिल किए जा सकते हैं।”[4]
उपभोक्ताओं से जुड़ने के लिए कार्पोरेट जनसंपर्क पारंपरिक प्रकार का भी मीडिया का इस्तेमाल करता है। पर आज सूचना प्रौद्योगिकी से चलने वाले बाजार आधारित व्यवसाय का ही भविष्य दिख रहा है। आज इंटरनेट के माध्यम से विश्व के किसी भी डिपार्ट्मेंटल स्टोर से खरीददारी करना पड़ोस की दुकान से सामान खरीदने से भी ज्यादा सरल हो गया है। इस प्रक्रिया को ई-शॉपिंग भी कहते हैं। विडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए कंपनियां दूरस्थ अधिकारियों के बीच मीटिंग कर रही हैं। उक्त तथ्यों को और स्पष्ट रूप से समझने के लिए निम्नलिखित पंक्तियां सहायक है - आज भारत का संचार नेटवर्क एशिया के विशालतम नेटवर्कों में से एक होना है। लम्बी दूरी के ट्रांसमिशन नेटवर्कों में 1.5 लाख किलोमीटर की रेडियो प्रणाली तथा एक लाख पच्चीस हजार किलोमीटर लम्बी फाइबर प्रणाली कार्यरत है। सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार मार्च, 2000 में भारत में इंटरनेट कनेक्शनों की कुल संख्या 9.42 लाख थी। भारतीय इंटरनेट एवं मोबाइल संघ (आईएएमएआई) के आकड़ों के अनुसार दिसंबर 2012 तक देश में इंटरनेट यूजर्स की कुल संख्या 15 करोड़ थी। इनमें 10.5 करोड़ यूजर्स शहरी और 4.5 करोड़ ग्रामीण इलाक़ों में हैं।[5] इंडिया मोबाइल लैंडस्केप 2013 अध्ययन के अनुसार देश में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 14.32 करोड़ थी। उसी अध्ययन के अनुसार देश में डेस्कटॉप या लैपटॉप, स्मार्ट टीवी या मोबाइल देता कनेक्शन के जरिए इंटरनेट एक्सेस करने वालों की संख्या 9.47 करोड़ थी।[6] नेटवर्किंग कंपनी सिस्को के विजुअल्स नेटवर्किंग इंडेक्स (VNI) के अनुसार भारत में 2017 तक इंटरनेट यूजर्स की संख्या बढ़कर 34.8 करोड़ हो जाएगी।[7] ‘बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के जारी रिपोर्ट के अनुसरर वर्ष 2018 तक देश में 55 करोड़ इंटरनेट यूजर्स होंगे जिसमें 28 करोड़ छोटे कस्बों एवं शहरों से होंगे।’[8]
सूचना संचार प्रौद्यौगिकी और उपभोक्ता:
उपभोक्ताओं के सामने बाजार अनेक रूपों में है और उत्पादों के चयन एक से अधिक विकल्प भी मौजूद है। व्यक्ति विशेष, संगठन और कंपनियां सूचना संचार प्रौद्यौगिकी का उपयोग करते हुए अपने विचार और उत्पाद के प्रति एक ओर यूजर्स की समझदारी का अध्ययन करते हैं तो दूसरी ओर उन्हें उत्प्रेरित भी करते हैं। उक्त बातों को निल्सन इंडिया के निम्नलिखित बातों से और स्पष्ट होता है - “भारतीय उपभोक्ताओं द्वारा की जाने वाली खरीददारी बहुत हद तक उनके नियंत्रण वाले कारकों से तय होती है। निल्सन इंडिया के कार्यकारी निदेशक एड्रियन टेरान ने कहा कि एफ़एमसीजी क्षेत्र में ही 80 फीसदी उपभोक्ता पहले से तय उत्पाद के बजाय कोई अन्य उत्पाद खरीदते हैं। आज खरीददारों के पास अधिक चयन का विकल्प है और उनके फैसले बाजार में होने वाली स्थितियों पर तय होते हैं। रिपोर्ट में आगे कहा कि विश्लेषण में पता चला है कि पाँच खंडों में आधे से ज्यादा खरीददारों ने खरीददारी से पहले इंटरनेट की मदद ली। ये क्षेत्र हैं एफएमसीजी, मूवी, ट्रैवल, वहाँ और ऋण।”[9] 
सामान्य सूचना के साथ-साथ ब्रांड की स्थिति को मजबूत करने में मीडिया का महत्त्वपूर्ण योगदान है। कार्पोरेट जनसंपर्क की छवि निर्माण और ब्रांड प्रमोशन की प्रभावशाली संचार के साथ जनता को उपभोक्ता बनाने पर ज्यादा ध्यान होता है। “फिलिप कॉटलर ने “हॉर्वर्ड बिजनेस रिव्यू” में, सफल विपनांकों प्रोत्साहित करने के लिए “मेगा मार्केटिंग” के महत्त्व का मूल्यांकन किया है। कॉटलर का कहना है विपणन रणनीति के चार तत्व –उत्पाद, मूल्य, स्थान तथा संबर्धन (प्रमोशन) के अतिरिक्त, उच्च अधिकारियों को अपनी शक्ति और जनसंपर्क का भी इस्तेमाल करना चाहिए।” [10] प्रेस के आरंभ के बाद आरंभिक वर्षों में सूचना देने की प्रवृति ही प्रमुख थी । बाद में 19वीं सदी के अंतिम दशक से ब्रांड के नाम से बताया जाने लगा । 20वीं सदी में मुक्त बाजार की प्रतिस्पर्धा का तेजी से विकास होने के साथ ही ब्रांड की बिक्री की संभावनाएं और तेज हो गईं। ऐसा दिखाई भी दे रहा है जैसा कि ब्रांड एक्सपर्ट हरीश बिजूर लिखते हैं कि “हम भारत के नागरिक पहले हैं और फिर हम बाजार के उपभोक्ता हैं। यह वास्तविकता है। आज के आधुनिक समाज में हम में से कोई भी ऐसा नहीं है कि जिसका जीवन बाजार द्वारा मुहैया चीजों के बिना चल जाए। गरीब और अमीर समान रूप से उस उपभोक्ता समाज में हिस्सेदार है, जो उत्पाद, सेवाएं और हर प्रकार के ब्रांड्स उपलब्ध करा रहा है।”[11]      
सूचना संचार तकनीक ने आज बाजार के स्वरूप को बदलते हुए उपभोक्ताओं को घर बैठे ऑनलाइन शॉपिंग जैसी सुविधाएं देकर भारी लाभ कमा रही हैं। ग्राहक भी भारी पैमाने पर ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे हैं। त्योहारों के अवसर पर कार्पोरेट जगत भारी छूट की सूचनाएं विभिन्न जनमाध्यमों के माध्यम से देती रहती हैं। कार्पोरेट जनसंपर्क विभाग उत्पादों में भारी छूट की सूचनाएं व्यक्तिगत तौर पर सूचनाएं देने के लिए आधुनिक मोबाइल, ई-मेल, फेसबुक, टि्वटर, यू-ट्यूब आदि का इस्तेमाल कर रहा है। यानि आज उपभोक्ताओं तक उत्पाद संबंधी सूचना देने के माध्यम भी बदल गए हैं। साथ ही खरीददारों के पास चयन के अधिक विकल्प भी हैं। ग्राहकों के उत्पाद खरीदने जैसी फैसले भी बाजार में होने वाली स्थितियों पर तय होने लगे हैं। अर्थात ग्राहक यह देखता है कि कौन सी कंपनी किस प्रकार की और कितनी फायदे की स्कीम दे रही है, उसके आधार पर ग्राहक, उत्पाद या ब्रांड्स को खरीदने की योजना में शामिल होता हैं। उपरोक्त कथन को कथाकार उदय प्रकाश की इन बातों से और स्पष्ट समझा जा सकता है - न सोचें कि सिर्फ नई अर्थव्यवस्था पैदा हुई है, टेक्नोलॉजी नयी आयी है। उसने बड़े पैमाने पर समाज को बदल डाला है। इंटरनेट है, मोबाइल है, आईपॉड है, कम्युनिकेशन (संप्रेषण) के दूसरे साधन हैं।[12] 
नवीनतम शोध-परिणामों पर आधारित सूचनाएं संप्रेषित करने से सोशल मीडिया का और महत्त्व बढ़ जाता है। वर्तमान में सोशल मीडिया का बहुत अधिक विस्तार हुआ है और इसका अपने उपभोक्ता वर्ग पर जोरदार प्रभाव भी पड़ा है। उपभोक्ता वर्ग के हक को पाने व बनाए रखने के लिए सोशल मीडिया उन्हें जागरूक भी कर रहा है। मनोरंजन, सूचना और शिक्षा इन तीन महत्त्वपूर्ण कार्यों के साथ संवेदनशील मुद्दों एवं जन-जागरूकता का निर्माण कार्य हो रहा है। जैसा की “पैनासोनिक इंडिया के प्रबंध निदेशक मनीष शर्मा ने कहा कि पैनासोनिक त्योहारों के दौरान प्रचार के लिए सभी उपलब्ध माध्यमों का अनुकूलम उपयोग कर रही है और सोशल मीडिया उसका जरूरी हिस्सा है। त्योहारों के दौरान हमरे विपणन बजट का महत्त्वपूर्ण हिस्सा डिजिटल प्रमोशन पर किया जा रहा है।”[13]
ई-ट्रेड का बढ़ता प्रचलन:
20वीं सदी में सूचना और संपर्क के क्षेत्र में अद्भुत प्रगति हुई है। इलेक्ट्रानिक माध्यम के फ़लस्वरूप विश्व का अधिकांश भाग जुड गया है। सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति ने ई-व्यवसाय का द्वार खोल दिया है। इलेक्ट्रानिक वाणिज्य के रूप में ई-कॉमर्स, इंटरनेट द्वारा ई-मेल द्वारा संभव हुआ है। ऑनलाईन सरकारी कामकाज विषयक ई-प्रशासन, ई-बैंकिंग द्वारा बैंक व्यवहार ऑनलाईन, शिक्षा सामग्री के लिए ई-एजुकेशन आदि माध्यम से सूचना प्रौद्योगिकी का विकास हो रहा है।पिछले साल 2014 में 450 करोड़ डॉलर का आंकड़ा ऑनलाइन शॉपिंग का भारत में था। गूगल के अनुमान के अनुसार वर्ष 2015 में भारतीय ई-कॉमर्स बाजार में करीब 1000 करोड़ डॉलर मूल्य की संभावना है। 2020 तक भारत में ऑनलाइन शॉपिंग करने वालों की संख्या बढ़कर 20 करोड़ से अधिक हो जाएगी।”[14]  एक बड़ा कारण है कि भारत जैसे देश में करीब 100 मिलियन इंटरनेट यूजर्स में से करीब 50 फीसदी लोग ऑनलाइन शॉपिंग करना पसंद करते हैं और इनकी संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। इस ट्रेड को ध्यान में रखते हुए कंपनियां वेब स्पेस में अपनी जगह बनाने पर अधिक फोकस कर रही हैं। जैसा कि उत्पाद बनाने वाली कंपनियों जैसे हिंदुस्तान यूनिलीवर इत्यादि के साथ मिलकर काम कर रही है, जिससे उनके उत्पादों के सैंपल देश भर में लाखों ग्राहकों तक पहुंचाकर उन्हें ऑनलाइन खरीदारी करने के लिए प्रेरित किया जा सके। गूगल का उद्देश्य 2018 तक 2 करोड़ लघु एवं मझोले कारोबारों को ऑनलाइन लाना है।
इस क्षेत्र में विभिन्न प्रयोगों का अनुसंधान करके जनसंपर्क भी तकनीकी रूप से समृद्ध और विकसित होता गया। सूचना प्रौद्योगिकी सूचना, सूचनाओं का प्रबंधन, आँकड़ों (डेटा) का संग्रह, ज्ञान और शिक्षा का आदान-प्रदान, सामाजिक व व्यवसायिक क्रिया के हर क्षेत्र में अपना स्थान बना चुका है। हमारी आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, व्यावसायिक तथ अन्य बहुत से क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी का विकास और हस्तक्षेप दिखाई पड़ रहा है। इलेक्ट्रानिक तथा डिजिटल उपकरणों की सहायता से इस क्षेत्र में निरंतर प्रयोग हो रहे है। इस नये युग में ई-कॉमर्स, ई-मेडिसिन, ई-एजुकेशन, ई-गवर्नंस, ई-बैंकिंग, ई-शॉपिंग आदि इलेक्ट्रानिक माध्यमों का विकास हुआ है। सूचना प्रौद्योगिकी आज शक्ति एवं विकास का प्रतीक बन चुकी है। कंप्यूटर युग के संचार साधनों में सूचना प्रौद्योगिकी के आगमन से हम सूचना-समाज में जी रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के आगमन से कार्पोरेट जनसंपर्क के क्षेत्र में सार्थक समृद्दि के साथ अधिकाधिक लाभ भी हुआ है।
इसके अलावा भारत में सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से होने वाले कारोबार जैसे- ई-कामर्स, ई-बैंकिंग, ई-गवर्नेंस आदि को कानूनी मान्यता देने के उद्देश्य से मई, 2000 में संसद द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी बिल पास किया गया। इस विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाने के बाद सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (एक्ट) – 2000 के अंतर्गत ई-मेल, ई-कामर्स, इलेक्ट्रानिक दस्तावेज तथा डिजिटल हस्ताक्षरों को वैधानिक दर्जा मिल चुका हैं। इस एक्ट के साथ ही भारत विधिवत ई-कामर्स और ई-गवर्नेंस को अंगीकर करने वाला विश्व का 12वाँ देश हो गया है।
निष्कर्ष :
सूचना तकनीक के विकास ने कार्पोरेट जनसंपर्क परिदृश्य की प्रकृति और प्रभावशीलता दोनों उन्नत हुई है। 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में जनमाध्यम लगातार विकसित होते गए और अमूर्त विचार को संचार माध्यमों के द्वारा बड़े पैमाने पर सरलता के साथ वैश्विक मूर्त रूप दिया जाने लगा। इन माध्यमों से किसी भी विषय-वस्तु को विस्तृत एवं चरणबद्ध तरीके से भी प्रस्तुत किया जा रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी अपने विकास के लंबे सफर के बाद आज इस मुकाम पहुँच गई है जहाँ इसके विस्तार के लिए दुनिया छोटी पड़ती जा रही है। अतिशयोक्ति नहीं है कि सूचना-क्रांति ने संपूर्ण विश्व को ग्लोबल विलेज के रूप में परिवर्तित कर दिया है। इस ग्लोबल विलेज के संबंध में आर्थर सी क्लार्क के शब्दों को यहाँ उद्धृत करना समीचीन होगा – रेडियो तरंगों के लिए देश की सीमा रेखाएं वैसे भी अस्पष्ट हो जाती हैं। पर एक बड़ा मुद्दा यह है कि - आने वाला कल का विश्व एक सीमा-बंधन से मुक्त विश्व होगा क्या?’ नि:संदेह संचार क्रांति के परिप्रेक्ष्य में कल की सीमा बंधन से मुक्त विश्व हमारे सामने है। आज टाटा, रिलाएंस, बिरला विप्रो, गोदरेज हिंदुस्तान युनिलीवर लिमिटेड, आइटीसी, एमवे जैसी कंपनियां दुनिया के कई देशों में एक साथ उत्पादन और व्यापार कर रही हैं। इनके व्यापार का आधार संचार पर ही निर्भर है। जिसको विस्तार देने में सूचना संचार प्रौद्यौगिकी की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। 
संदर्भ ग्रंथ:
1.        पाखी – (2011, फरवरी).
2.        रत्तू, कृष्ण कुमार.  “ नया मीडिया संसार”  
3.        वर्मा, पवन के. भारत का नया मध्य-वर्ग”  
4.        हिंदुस्तान. (2013, अगस्त 26). “हिट फिल्म का गणित”
5.        नवभारत (2013, नवम्बर 26). “डिजिटल प्रौद्यौगिकी से कंपनियों को 20 अरब डॉलर कारोबार की उम्मीद” 
6.        नवभारत (2014, सितंबर 22). “उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए कंपनियां कर रही “सोशल मीडिया का उपयोग”
7.        गोल्डिंग, पीटर. पूंजीवाद और सूचना का युग”.   
8.        योजना, दिसंबर 2015
9.        हिंदुस्तान, गोरखपुर, (2013, 09 सितंबर).  
10.     नवभारत टाइम्स हिंदी, मुंबई. (2013, 6 जून).
11.     लोकमत समाचार, नागपुर, (2015, 24 अप्रैल).
12.     रघु कृष्णन / बेंगलूरु September 20, 2015 http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=108560/26/10/15
13.      पाण्डेय, वंदना. (2013). “विशेषीकृत जनसंपर्क.” पंचकुला: हरियाणा ग्रंथ अकादमी.    
14.     भाटिया, तारेश. (2007). “आधुनिक विज्ञापन और जनसंपर्क” नई दिल्ली: तक्षशिला प्रकाशन.
15.     सेनगुप्ता, सैलेश. (2003). “जनसंपर्क एवं संचार प्रबंधन” जयपुर: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी.




[1] Facebook Head Quarters, California.
[2] गोल्डिंग,पीटर. पूंजीवाद और सूचना का युग: पृ. 98 
[3] पवन के. वर्मा भारत का नया मध्य-वर्ग पृ. 18
[4] नवभारत (2013, नवम्बर 26). “डिजिटल प्रौद्यौगिकी से कंपनियों को 20 अरब डॉलर कारोबार की उम्मीद” 
[5] योजना, दिसंबर 2015 पृ. 53  
[6] हिंदुस्तान हिंदी, गोरखपुर, 09 सितंबर, 2013
[7] नवभारत टाइम्स हिंदी, 6 जून 2013, मुंबई
[8] लोकमत समाचार, नागपुर, 24 अप्रैल 2015, पृ. 11
[9] नवभारत (2013, नवम्बर 26). “डिजिटल प्रौद्यौगिकी से कंपनियों को 20 अरब डॉलर कारोबार की उम्मीद” 
[10] सैलेश सेनगुप्ता, (2003). जनसंपर्क एवं संचार प्रबंधन. पृ. 169.
[11] दैनिक भास्कर (2015, मई 11). “क्या है आपकी ऑन स्ट्रीट वैल्यू?”
[12] पाखी फरवरी, 2011, पृ. 60
[13] नवभारत (2014, सितंबर 22). “उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए कंपनियां कर रही सोशल मीडिया का उपयोग” 
[14] रघु कृष्णन / बेंगलूरु September 20, 2015 http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=108560/26/10/15