Tuesday, 1 October 2013

सोशल मीडिया : एक विहंगम संचार माध्यम
शम्भू शरण गुप्तशोध छात्र (जनसंचार),  संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र). E.mail:naharguptass@gmail.com
सोशल मीडिया ऐसा विहंगम संचार माध्यम है जो आसानी से इंटरनेट तक पहुंच रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए सुलभ है। सोशल मीडिया जो अपने आप में पूरी तरह से लोकतांत्रिक स्वरूप में है, इंटरनेट आधारित होने के कारण  यह अपने माध्यम से अत्यंत तीव्रता से जनमत निर्माण सुनिश्चित करता है। आने वाला समय नागरिक पत्रकारिता के होने की पूरी-पूरी सम्भावना है सोशल मीडिया के आने के बाद यह एक प्रकार से तय लग रहा है। अर्थात इंटरनेट के सहारे जो चाहे वो सोशल मीडिया पर स्वतंत्र, वैश्विक और निर्भीक पत्रकार बन रहा है। सोशल मीडिया ने ऐसे चमत्कारी रूप में दस्तक दिया, जिसके  मूल स्वभाव में ही अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के कारण लोकतंत्र को नए आयामों तक पहुँचाने की जबरदस्त क्षमता तो दिखती है साथ ही हॉलीवुड, बॉलीवुड, राजनीति, व्यवसाय, पत्रकारिता, कला, विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों के विशिष्टजनों ने अपनी उपस्थिति से इसे और अधिक सशक्त और प्रतिभासंपन्न बनाया है जो अपने आप में अद्भुत है। इतना ही नहीं इसने लोगों को लोगों से केवल विषय साझा करने का ही नहीं बल्कि विषय मे भागीदार बनने हेतु असीमित स्थान और पर्याप्त समय भी प्रदान किया है। वहीं इसमें लोगो की हिस्सेदारी व भागीदारी पर मुख्य धारा की मीडिया के संपादक जैसे गेटकीपर की तरह कोई रोक नहीं है और न ही लोगों को इसके लिए भुगतान करने की जरूरत है। सोशल मीडिया के विहंगम संचार दृष्टि को मुख्य धारा की मीडिया जैसे समाचार पत्र, टेलीविज़न चैनलों और रेडियो के एकतरफा संचार के विकल्प के रूप में भी तेजी से स्थापित होता जा रहा है जिसका परिणाम ये है की सारे मीडिया समूह अपना “इंटरेक्टिव समाचार पोर्टल” पर अच्छा-ख़ासा ज़ोर दे रहे हैं। लोकतंत्र के सभी धर्मों का पालन करते हुए यह एक ऐसा शक्ति बन चुका है कि जो एक ओर सत्ता पर अंकुश रखते हुए जन-मानस को अपनी भावनाओं व विचारों को व्यक्त करने और दूसरों की भावनाओं व विचारों से इंटरैक्ट होने का भरपूर अवसर प्रदान करता है। किसी भी राज्य (देश) की चौथी शक्ति; जन-मानस का उद्घोष; जन-मन की विचार धारा का प्रतिनिधि तथा जनता-जनार्दन का सर्वाधिक प्रिय और तेजी से विस्तार करने वाला मीडिया आज ट्विटर, फेसबुक, यू-ट्यूब, ब्लाग, लिंक्ड इन व माईस्पेस आदि जैसे विभिन्न नामों से सोशल मीडिया अपने विराट स्वरूप में उपलब्ध है।
तेजी से बदलते तकनीकी संसाधनों के साथ मीडिया का स्वरूप भी बदलता जा रहा है। विगत कुछ वर्षों में सोशल मीडिया का बहुत तेजी से विस्तार हुआ है और इतने कम समय में ही वो राजनीति और देश की दशा और दिशा को प्रभावित करने के स्तर तक पहुंच गया है। सूचनाओं के प्रवाह और खबरों को सर्वप्रथम और तीव्रता से पहुंचाने का काम अब सोशल मीडिया के ही खाते में आ चुका है जैसा की मुख्य धारा की मीडिया अनेक अवसरों पर अपना ही पीठ ठोकती हुई दिखाई पड़ती है “फलने के एक्सक्लूसिव फलां खबर का असर” अब यह या तो दिखाई नहीं पड़ेगा या बहुत कम दिखाई देगा। जैसाकि 2011 में दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर हुये बम धमाके की खबर सबसे पहले सोशल मीडिया के द्वारा ही सामने आयी थी। कोई भी घटना घटी नहीं कि कुछ मिनटों में सोशल मीडिया के द्वारा विश्व के हर कोने में फैल जाती है। यद्यपि इसका नकारात्मक प्रभाव भी कभी-कभी दिख जाता है और सरकारें इन पर प्रतिबंध लगाने और नियम कानून से ख़त्म करने का पुरजोर प्रयास अक्सर करती रहती है बावजूद इसके इसका दायरा और शक्ति दोनों ही तेजी से बढ़ते जा रहे हैं।
भाषा, कंटेंट, प्रजेंटेशन, कलेवर, से लेकर विज्ञापन और विपणन आदि तक में सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया जा रहा है। नागरिक पत्रकारिता से लेकर सोशल मीडिया ने मीडिया की परिभाषा ही बदल दिया है। सोशल मीडिया एक नए इतिहास को लिखते हुए अपनी उपयोगिता जिस प्रकार साबित कर रहा है वह पूरे विश्व के तानाशाहों को लोकतंत्र के आगे झुकने को मजबूर कर दिया है। हाल के दिनों में दुनिया के तमाम देशों में जिस तरह के जन आंदोलन हुए, उसमे ट्विटर, फेसबुक, यू-ट्यूब, आदि तमाम सोशाल मीडिया की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। इसके अलावा ब्लॉग पर लिखे जाने वाले लेख, टिप्पणियाँ, विरोध के स्वर आदि जनतांत्रिक मूल्यों के व्यापकता और उसके प्रभावी पक्ष को दर्शाते है। चूंकि सोशल मीडिया के आने से पहले के सभी मीडिया पर सिर्फ कुछ ही लोगों के द्वारा तय किए गए समाचार छापे और दिखाए जाते थे। इसी एकाधिकार को ख़त्म करते हुए सोशल मीडिया ने हर किसी को नागरिक पत्रकारिता करने जैसी मूलभूत जिम्मेदारी दे दी है और एक स्वस्थ लोकतंत्र के निर्माण का रास्ता आसान कर दिया है।       
 भारत में परंपरागत मीडिया की तुलना में डिजिटल मीडिया पर खर्च अभी काफी कम है, लेकिन यह टेलीविजन और प्रिंट के मुकाबले तेजी से बढ़ रहा है। देश में फोन पर इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या बढ़ने के साथ ही कंपनियां भी इस मीडियम को काफी महत्व दे रही हैं। यही कारण है कि रानीतिक दल भी सोशल मीडिया पर अच्छा-ख़ासा खर्च करने के लिए तत्पर हैं यही कारण है कि कांग्रेस के ने जयपुर शिविर मे सरकार निर्णय किया कि सोशल मीडिया पर सरकार और पार्टी की मौजूदगी दर्ज कराएगी लिहाजा इस निमित्त 100 करोड़ रुपये का बजट किया था। उधर, कांग्रेस ने भी सोशल मीडिया पर इमेज मेकओवर के लिए केंद्रीय मंत्री अजय मकान और प्रिया दत्त की अगुवाई में 35 लोगों की टीम बना रखी है। इसके साथ-साथ पार्टी ने अपने करीबी स्वनामधान्यों को कांग्रेस की नीतियों के पक्ष में बात करने का आग्रह किया है।
20वीं सदी के नब्बे के दशक में सोशल मीडिया पहली बार दस्तक दिया, जब सर्वप्रथम 1985 में Theglob.Com, 1984 में Geocities तथा 1995 में Tripod.com के रूप में सामान्यीकृत समुदायों के लिए आनलाइन शुरू किया गया। इसका प्रयोग लोगों ने एक-दूसरे से चैट करने, सूचनाओं को शेयर करने और अपने विचारों के माध्यम से एक दूसरे के साथ बातचीत करने के लिए किए थे। कुछ लोग ई-मेल करने के लिए इसका प्रयोग करते थे। शुरुआती दौर में इसे छः शहरों में प्रयोग किया गया। परंतु धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता इतनी अधिक बढ़ गयी कि आज यह दुनिया के सभी कोनों में उपलब्ध है। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएसन आफ इंडिया और इंडियन मार्केट रिसर्च ब्यूरो के अनुसार आज देश में इसका इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 66 मिलियन हो गयी होगी। जबकि पिछले वर्ष 2012 के दिसंबर माह में यह संख्या 62 मिलियन थी। अर्थात मात्र छः माह में चार मिलियन की बृद्धि हुई। जिसमें से लगभग 74 प्रतिशत उपयोगकर्ता सक्रिय रूप से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते है। 21वीं सदी के पहले दशक में इस मीडिया ने पत्रकारिता को सिर्फ प्रिंट या इलेक्ट्रोनिक मीडिया का सीमाबद्ध संपादित व प्रायोजित सूचनात्मक विषय को न सिर्फ पीछे छोड़ा है बल्कि आम जन सामान्य को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के साथ स्वसंपादित व स्वप्रेषित तथा बहुपक्षीय संवाद स्थापित करने का मौका दिया है। सोशल मीडिया लोगों को आपस में जोड़ने वाली तकनीक आधारित एक दूरसंचार प्रणाली है। जो इंटरनेट आधारित तकनीक के इस वर्तमान दौर में आज बहुत ही अहम् हो गई है। क्योंकि इसके द्वारा लोग पूरी दुनिया के किसी भी भाग में स्थित व्यक्तियों के समूह से जुड़कर अपने विचारों का आदान-प्रदान तो कर रहे हैं साथ ही साथ सामाजिक, राजनीतिक आंदोलनों को समर्थन भी दे और ले रहे हैं। इसके अलावा किसी नए अन्वेषणात्मक कार्य को और गतिशील बना रहे हैं। इसके साथ-साथ राजनीति को भी सीधे प्रभावित करने की स्थिति मे हैं। भारतीय इंटरनेट एवं मोबाइल संघ आई. आर. आई. एस.  ज्ञान फाउंडेशन द्वारा कराये गये एक अध्ययन के अनुसार आगामी लोकसभा के आम चुनाव में सोशल मीडिया 543 में से 160 सीटों को प्रभावित कर सकता है। महाराष्ट्र से 48 सीटें हैं वहां सोशल मीडिया सबसे ज्यादा 26 सीटों को प्रभावित करेगा। गुजरात में कुल 26 में से 17 लोकसभा सीटों को प्रभावित करेगा। उन संसदीय सीटों के नतीजों पर सोशल मीडिया से सबसे ज्यादा प्रभावित होने की उम्मीद है जहां फेसबुक उपयोग करने वालों की संख्या पिछले लोकसभा चुनाव में जीते उम्मीदवारों के जीत के अंतर से भी कहीं अधिक है या जहां कुल मतदाताओं में दस प्रतिशत से अधिक फेसबुक अकाउंट होल्डेर्स हैं। अध्ययन बताता है कि सोशल मीडिया उत्तर प्रदेश की कुल 80 में से 14, कर्नाटक की 28 में से 12, तमिलनाडु की 39 में से 12, आंध्र की 42 में से 11 और केरल की 20 में से आधी अर्थात 10 सीटों को प्रभावित करेगा। राजधानी दिल्ली की सभी सात और मध्य प्रदेश की 29 में से नौ सीटों के परिणामों पर भी इसका अच्छा-ख़ासा असर पडने की सम्भावना है। हरियाणा, पंजाब और राजस्थान की पांच-पांच सीटों, जबकि बिहार, चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर, झारखंड व पश्चिम बंगाल की चार-चार सीटों पर सोशल मीडिया का जबरदस्त प्रभाव पड़ने का अनुमान है। जनता से सीधे जुड़ने का प्रयास या अपनी छवि और लोकप्रियता बढ़ाने का प्रयास, आगामी चुनावों में सोशल मीडिया का प्रयोग न बढ़े ऐसा नहीं हो सकता।
देश की आबादी में युवा 70 प्रतिशत है यानीकि दुनिया का सबसे जवान हमारा देश है। युवाओं की सोशल मीडिया के प्रति दीवानगी किसी से छिपी नहीं है। औसतन एक युवा दो-तीन घंटे प्रतिदिन इंटरनेट और सोशल वेबसाइट पर बिताता है। ऐसे में देश को दिशा और दशा देने, जनहित से जुड़े मुद्दे और सरकार, पुलिस, प्रशासन की नाकामियों और भ्रष्टाचार को उजागर का सशक्त हथियार सोशल मीडिया बन चुका है। कई राज्यों में बीते एक-दो वर्षों में हुये चुनाव में सोशल मीडिया अपनी भूमिका को महसूस करवा चुका है।
हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार साल 2011 में देश में जहां केवल 12.5 करोड़ इंटरनेट यूजर थे वहीं 2016 तक उनकी संख्या बढ़कर 33 करोड़ पर पहुंचने की संभावना है। खास तौर पर 18 से 24 आयु वर्ग के लोगों के बीच इंटरनेट की पहुंच सबसे ज्यादा है जबकि 54 वर्ष से अधिक उम्र के लोग इंटरनेट का इस्तेमाल सबसे कम करते हैं। गौरतलब है कि हाल में इंटरनेट की लोकप्रियता इतनी तेजी से बढ़ी है कि सालाना 1.5 लाख रुपये से कम आमदनी वाले 18 प्रतिशत लोगों की इंटरनेट तक पहुंच है।
अभी हाल ही में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी दिल्ली आए थे। भाजपा को दिए चुनावी मंत्रों में से सोशल मीडिया का बढ़ता महत्व भी एक मंत्र था। मोदी ने अपने सुझावों में कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 11 करोड़ वोट मिले थे। अगले छह महीने में देश में मोबाइल और इंटरनेट उपयोगकर्ता 14 करोड़ हो जाएंगे। लिहाजा इनको टारगेट करना जरूरी होगा यदि ये हो गया तो बहुत लड़ाई भूत हद तक अपने पक्ष होगी। सोशल मीडिया का योजनाबद्ध तरीके से उपयोग कर इनको अपनी तरफ भाजपा लाए। आज की स्थिति यह है कि नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति सोशल मीडिया की 11 प्रमुख वेबसाइटों पर हैं और पूरी सक्रियता और तन्मयता के साथ अपनी बात रख रहे हैं। दुनिया की सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक पर लोकप्रियता के मामले में नरेन्द्र मोदी और प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। माइको ब्लागिंग वेबसाइट ट्विटर पर भी नरेन्द्र मोदी बेहद सक्रिय दिखते हैं। यही नहीं उनके नाम से एंड्रॉयड और आईफोन इस्तेमाल करने वालों के लिये आधिकारिक एप्लीकेशन भी बनाए जा चुके हैं।  यह एक ऐसा संचार माध्यम है जो लोकतंत्र के आँख-कान खोल रहा है, सबके लिए देख-सुन रहा है, चौबीसों घंटे सबके साथ और सबके पास रहने के लिए अपने पांव फैला रहा है। यह सबको NEWS यानी नार्थ, ईस्ट, वेस्ट, साउथ के हाल-चाल से परिचित करने के साथ-साथ देखने-सुनने, सोचने-विचारने और अपने विचारों से दूसरों को इंटरैक्ट करने के साथ-साथ फिल्मों, व्यवसाय में वृद्धि करने का अवसर देता है। इतना ही नहीं वरन व्यक्ति-मन को ग्लोकल (ग्लोबल + लोकल) स्तर तक जोड़ने, उसको निरंतर सक्रीय बनाए रखने, नवीनतम सूचनाओं से अपडेट होने और सब मिलाकर सजीव सा बने रहने का दायित्व-बोध कराता है। सोशल मीडिया एक ऐसा विहंगम जनमाध्यम जो सूचनाओं के एकाधिकार को खत्म कर सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, व्यवसायिक, व्यक्तिगत, शासकीय, मनोरंजनपूर्ण, तथा वैचारिकी आदि गतिविधियों पर कुछ लिखने-पढ़ने तथा दूसरों द्वारा लिखे गए विचारों से तुरंत परिचित कराता है, सत्ता पर अंकुश रखता है, जन-मत का निर्धारण करता है, परिवेश से साक्षात्कार कराता है और अवसर पड़ने पर लोकतंत्रीय व्यवस्था के चौथे स्तंभ के रूप में राष्ट्रव्यापी समस्याओं का समाधान भी करता है। सूचना ही शक्ति है। तेजी से बदलती इस दुनिया में सूचना और संचार के महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाने में सोशल मीडिया अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहा है। जनसंचार माध्यम के रूप में सोशल मीडिया नए-नए जनसमाज (Mass Society) का निर्माण कर रहा है। आज सोशल मीडिया “चेतन मानव एजेंट” का निर्माण कर सामाजिक, राजनैतिक, मानसिक आदि विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आज राजनीतिक पार्टिया और व्यवसायिक कंपनियां सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए जन-जन तक पहुँच रहीं है। संगठनों को अपने ब्रांड के प्रति जागरूकता बढ़ाने के अवसर देते हुए, ग्राहकों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करता है. इसके अतिरिक्त, सोशल  मीडिया संगठनों को अपने विपणन अभियान को कार्यान्वित करने के लिए एक अपेक्षाकृत सस्ते मंच के रूप में कार्य करता है. संगठन अपने ग्राहकों और लक्षित बाजारों से सीधे प्रतिक्रिया भी प्राप्त कर सकते हैं जिसके लिए उन्हें पहले काफी बड़ी राशि खर्च करनी पड़ते थी.
सोशल मीडिया से आशय दरअसल ट्विटर, फेसबुक, गूगल, यूट्यूब, ब्लाग, लिंक्ड इन व माईस्पेस जैसी सोशल वेबसाइटस से है जिनसे दुनिया भर के करोड़ों लोग जुड़े हुए हैं। सोशल मीडिया में प्रिन्ट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के सारे गुण है। यही कारण है कि लोगों में अपनी जगह बनाने के लिए प्रिन्ट और इलेक्ट्रानिक मीडिया की अपेक्षा सोशल मीडिया को बहुत ही अल्प समय लगा है। जिसे “नयी वर्चुअल क्रांति” की संज्ञा दी गयी है। जहां उपयोक्ता को जन्म के साथ मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पूरी तरह से उपयोग करने का एक मंच दिया है। हम सभी के जीवन काल मे ही दुनिया ने अर्द्ध औद्योगिक अर्थव्यवस्था को छोड़कर औद्योगिक अर्थव्यवस्था में प्रवेश किया फिर वह कंप्यूटरीकृत अर्थव्यवस्था में आ गयी। तेजी से बढ़ती आबादी, शहरीकरण, औद्योगीकरण, वैज्ञानिक तकनीकी ज्ञान के विस्फोट, शिक्षा के प्रसार के साथ ही समाज में परिवर्तन की आंधी आ गयी। सही मायने सोशल मीडिया की ताकत दिखी बहरीन, मिस्र, लीबिया, सीरिया और ट्यूनीशिया जैसे देशों मे जहाँ की सरकारों ने इसकी शक्ति के आगे अपने घुटने टेक दिये और हमेशा के लिए ख़त्म हो गए या फिर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते दिखाई दे रहे हैं। ऑक्युपाई वॉलस्ट्रीट आंदोलन ने तो अमेरिका को भी हिला के रख दिया था, भारत में भी अन्ना आंदोलन और दिसंबर 2012 में दिल्ली वसंत विहार गैंगरेप मामले ने देश के हर वर्ग के लाखों लोगों को आंदोलित कर दिया और सरकार को कुछ कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भी ट्विटर पर आने के बाद कांग्रेस अपने मुख्यमंत्रियों को टेक्नॉलजी से होने की हिदायत दी गई है। आने वाले दिनों में  कांग्रेस के कुछ मंत्री और मुख्यमंत्री सोशल मीडिया पर दिख सकते हैं वैसे भी काँग्रेस ने काफी देर से ही सही, इसकी कमान प्रिय दत्त को सौंप दी है देखते हैं क्या होता है। उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी सोशल मीडिया का जमकर प्रयोग करते हैं, उनकी पत्नी और कन्नौज से सपा सांसद डिम्पल यादव सोशल मीडिया पर लोकप्रियता के मामले में पति अखिलेश से काफी आगे है। ऐसी आशा है कि आगामी लोकसभा चुनावों में सोशल मीडिया बड़ी भूमिका निभा सकता है। सार्वभौमिक संवाद का बेहतर, सर्वव्यापी और सर्वसुलभ उपकरण के रूप में विकसित हो चुके सोशल मीडिया ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को बहुचर्चित घटनाक्रम को अतिविशिष्ट बनाने में इसकी महती भूमिका थी। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जीत के बाद सबसे पहले अपने जनसंबोधन में खुलकर कहा “यह आपके कारण ही संभव हुआ, आप सबको धन्यवाद”। साथ ही ट्वीट भी किया था। ये सोशल मीडिया की शक्ति है।
 हम जिस तेज गति से इक्कीसवीं सदी की ओर बढ़े हैं, निश्चय ही अकल्पनीय और आश्चर्यजनक है। जबकि दुनिया ने आदिम युग से कृषि युग आने में हजारों साल लगाए और फिर सैकड़ों साल कृषि युग में बिताते हुए औद्योगिक युग में प्रवेश किया लेकिन एक शताब्दी से कम समय में दुनिया ने औद्योगिक युग को पीछे छोड़कर सूचना युग में प्रवेश किया है। और सूचना प्रौद्योगिकी युग ने जीवन के मायने को ही बदल दिया। इंटरनेट ने बाजार व निजी दोनों जीवन के दोनों क्षेत्रों के लिए अपार संभावनाओं भरा क्षितिज खोल दिया है। उत्तरोत्तर कंप्यूटर, इंटरनेट और सूचना प्रौद्योगिकी पर हमारी निर्भरता बढ़ती ही जा रही है। आज यह हमारी जीवन शैली का अभिन्न अंग बन चुका है ठीक कर्ण के कवच-कुण्डल की तरह।