Saturday 30 May 2020

हिंदी पत्रकारिता और डिजिटल संचार



हिंदी पत्रकारिता और डिजिटल संचार
                                                                                                          डॉ. शम्भू शरण गुप्त
फ़ैकल्टी, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
टेक्निया इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज़, नई दिल्ली

हिंदी पत्रकारिता और हिंदी सेवा में उदन्त मार्तंड का उद्भव न सिर्फ हिंदी पत्रकारिता बल्कि हिंदुस्तान को स्वाधीनता स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों और आम जन-मानस के लिए भी प्रेरणा का एक बड़ा स्त्रोत रहा है । आज हिंदी पत्रकारिता और स्वतंत्रता आंदोलन के क्षेत्र में इसके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है । हालांकि उदन्त मार्तंड समाचार पत्र के प्रकाशन की अवधि बहुत अधिक नहीं थी; बावजूद इसके इस हिंदी भाषी समाचार पत्र ने भारतीय पत्रकारिता की दुनिया में जो अलख जगाया था, आज उसकी लौ सम्पूर्ण विश्व को आलोकित कर रही है । हिंदी पत्रकारिता का सूर्य 'उदन्त मार्तंड' 30 मई 1926 को कलकत्ता से उदित होकर हिंदी जगत को जागृत किया । परिणामस्वरूप हिंदुस्तान की लोक मानस को अभिव्यक्ति की एक नई दिशा मिली । समय के साथ हिंदी पत्रकारिता के रूप-स्वरूप में अनेक बदलाव आए । हिंदी पत्र-पत्रिकाओं की संख्या और उनके प्रसार में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई । इन्टरनेट ने हिंदी पत्रकारिता का और विस्तार किया । स्थिति यह है कि अब हिंदी अमेरिका, रूस, आस्ट्रेलिया, कनाडा, हंगरी, जापान और चीन सहित दुनिया के अनेक देशों में हिंदुस्तान और हिंदी को जानने और समझने के लिए पढ़ी और पढ़ाई जा रही है । जैसाकि आप सभी जानते हैं दुनिया में बड़े-बड़े परिवर्तन हुए हैं – बर्लिन की दीवार टूटी, विश्व व्यापार संगठन बना, ऑनलाइन व्यापार शुरू हुआ, संचार क्रांति आयी और विश्व एक गांव जैसा सदृश्य हो गया । ठीक उसी प्रकार भारत की हिंदी पत्रकारिता अपना डिजिटलीकरण कर वैश्विक स्वरूप धारण कर लिया । डिजिटल दौर में हिंदी पत्रकारिता भारत की संस्कृति, दर्शन और यथार्थ नव-जागरण को वैश्विक धरातल से जोड़ रही है । इस तरह से हिंदी पत्रकारिता एक साथ दो पाठक समाज का निर्माण कर रही है । एक पाठक समाज वह है, जिसे हिंदी पत्रकारिता ने विरासत में ग्रहण किया है, अर्थात हिंदी भाषी क्षेत्र के सदस्य के रूप में पैदा हुई है, जी रही है और हिंदी भाषा में कार्य कर रही है । दूसरा पाठक समाज वह है, जिसका निर्माण हिंदी पत्रकारिता करना चाहती है, अर्थात अहिंदी राज्य-राष्ट्र में रहने वाले हिंदी प्रेमी पाठक समाज । नई टेक्नॉलॉजी के इस युग में डिजिटल फॉर्म इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वर्तमान जन-जीवन रूढ़ियों और संकीर्णताओं से मुक्त समाज की अवधारणा दी है । आज का जमाना 'हाई टेक्नॉलॉजी और हाई स्पीड' का है । आज नई टेक्नॉलॉजी मनुष्य और मानव समाज के व्यक्तिगत, शैक्षणिक, शोध, संस्थागत, व्यसायिक और जीवन-मूल्य संदर्भ हर एक के जीवन की कसौटी बन गया है । वर्तमान समाज की दिनचर्या और गतिशीलता दिनोंदिन उच्चतर और सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित होती जा रही है । इन दिनों गांव से लेकर शहर तक और गरीब से लेकर अमीर तक बहुतायत के हाथों में स्मार्ट मोबाइल फोन दिखाई देने लगा है । देश और समाज की हर छोटी-बड़ी सूचनाएं सबसे पहले हम मोबाइल के द्वारा प्राप्त कर रहे हैं । राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खबरों को विस्तार से जानने और पढ़ने के लिए समाचार पत्रों और चैनलों की ओर मुखातिब होते हैं । ये दोनों सूचना और संचार के फॉर्म अर्थात समाचार पत्र और टीवी/वीडियो दोनों ही हमारे मोबाइल फोन में इंटरनेट के सहारे हर समय और हर जगह उपलब्ध है । अर्थात इंटरनेटमोबाइल फोनमोबाइल एप्लिकेशनटैबलेटलैपटॉप और अन्य आधुनिक उपकरणों के विकास के कारण आज की हिंदी पत्रकारिता डिजिटल हो चुकी है । कंप्यूटर, इंटरनेट और तकनीक ने मीडिया संस्थाओं के साथ आम आदमी को पत्रकारिता के क्षेत्र में विनियोग करने की अप्रतीम सुविधा प्रदान किया है । हिंदी पत्रकारिता का स्वरूप बदलने के साथ पत्रकारों को बतौर तकनीकी रूप से दक्ष होना पड़ा है । मुख्यालय से दूर का पत्रकार आज का न सिर्फ खबर का रिपोर्टिंग कर रहा है, समाचार को कंपोजिंग कर उसे संपादित कर रहा है । मोबाइल के माध्यम से फोटो भी ले रहा है और उसे संपादित कर उसका कैप्शन लगाकर इंटरनेट के माध्यम से मुख्यालय को भेज रहा है ।
            आज दुनिया का प्रत्येक वह व्यक्ति जो कंप्यूटर और इंटरनेट सेवी है वह हिंदी पत्रकारिता के माध्यम से हिंदी भाषा में संपूर्ण दुनिया के साथ जीवित संवाद स्थापित कर रहा है । भारत में इंटरनेट प्रयोग का बढ़ता सूचकांक हिंदी पत्रकारिता को डिजिटलीकरण की ओर बढ़ना स्वाभाविक है । इंटरनेट का विकास पिछले 2002 से होना शुरू हुआ और लगभग एक-डेढ़ दशक में वेब और ई-मेल पाठकों तथा मीडिया घरानों की मुख्य धारा के जरूरी अंग बन गए । डिजिटल तकनीक को तेजी से अपनाए जाने से सरकारी कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करने और इसे लागू करने का तरीका पूरी तरह से बदल गया है । प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली, ई-मार्केटप्लेस, भीम ऐप के जरिए डिजिटल भुगतान संबंधी लेन-देन आदि के कारण नए इंटरफेस के जरिए हिंदी भाषा में सरकार की भी सक्रियता बढ़ी है । आज हम डिजिटल हिंदी भाषा का प्रयोग क्षेत्र न केवल भारत है बल्कि यह दुनिया के अनेक देशों में विशेषकर फ़िजी, मारीशस, सूरीनाम, त्रिनिनाद आदि देशों प्रवासी हिंदी भाषियों तथा वहाँ के अन्य नागरिकों द्वारा बोली जाती है । दुनिया का पहला डिजिटल फॉर्म इंटरनेट पर सबसे पहली ऑनलाइन हिंदी साहित्यिक पत्रिका 'भारत दर्शन' का प्रकाशन 1996 में भारत से नहीं बल्कि न्यूजीलैंड से प्रकाशित हुआ । वहीं आगरा शहर के होनहार युवा अनुज अग्रवाल पिछले 9 वर्षों से आस्ट्रेलिया में 'हिंदी गौरव' नाम का समाचार पत्र सफलता पूर्वक संपादित कर रहे हैं । इसे यू ट्यूब पर भी हिंदी भाषा में अनेक लोगों का साक्षात्कार भी देखा जा सकता है । इसलिए देश और विदेश से प्रकाशित होने वाली प्रत्येक हिंदी भाषी समाचार पत्र और पत्रिकाओं को ऑनलाइन डिजिटल फॉर्म में भी न सिर्फ देखा जा रहा बल्कि उसे पढ़ कर प्रतिक्रिया भी दिया जा रहा है । इसके अलावा न सिर्फ समाचार पत्र और पत्रिकाएं बल्कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया अर्थात रेडियो और टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाले खबरों को भी डिजिटल स्वरूप दिया जा रहा है । सिनेमा भी इससे अछूता नहीं है । समकालीन पत्रकारिता की महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि उस समय पूर्णतः मिशनरी पत्रकारिता होती थी । आज की तरह किसी भी तरह का कोई व्यवसायिकता का कोई लोग-लपेट नहीं होता था । एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हिंदी पत्रकारिता के सहारे ही खड़ी हिंदी बोली का विकास हुआ और हिंदी का एक नया गद्य स्वरूप सामने आया। हिंदी पत्रकारिता और हिंदी गद्य की चर्चा करे तो हिंदी पत्रकारिता और गद्य साहित्य के मर्मज्ञ विभूति भारतेन्दु हरिशचन्द्र का 'हरिश्चंद्र चंद्रिका', और बाबू बालमुकुंद गुप्त के 'शिवशंभू के चिट्ठे' को जरूर याद किया जाता है । इस संदर्भ में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं कि "हिंदी गद्य का ठीक परिष्कृत रूप पहले-पहले इसी चंद्रिका में प्रकट हुआ । जिस प्यारी हिंदी को देश ने अपनी विभूति समझा, जिसको जनता ने उत्कंठापूर्वक दौड़कर अपनाया, उसका दर्शन इसी पत्रिका में हुआ । भारतेन्दु ने नई सुधरी हिंदी का उदय इसी समय से माना है।" वहीं बाबू बालमुकुंद गुप्त के संदर्भ में गुप्तजी के "शिवशंभु के चिट्ठे' जिसे पॉलिटिकल एस्से का नाम दिया जाता है, गद्य का श्रेष्ठ उदाहरण है जिस पर टिप्पणी करते हुए भारतेन्दु युगीन साहित्य के मर्मज्ञ समीक्षक डॉ. रामविलाश शर्मा ने लिखा है कि "ये व्यंग्यपूर्ण निबंध भारतेन्दु और प्रतापनारायन मिश्र की परंपरा का अनुकरण करके लिखे गए हैं । भाँगड़ी शिवशंभु के दिवास्वप्नों के बहाने गुप्तजी के विदेशी शासन पर खूब फब्तियाँ कसी हैं । गुप्तजी ने 'भारतमित्र' में भाषा की अनस्थिरता को लेकर 1906 में जो दस लेख लिखें उससे आलोचना के क्षेत्र में वाद-विवाद और संवाद का प्रारम्भ माना जाता है। 'भारतमित्र' की यह आठ वर्षों की अवधि उसका स्वर्णयुग था । हिंदुस्तान की राष्ट्रीय चेतना, जन-संवेदना, लोक-भावना, जन-संस्कृति को ठीक-ठीक पढ़ने और समझने के लिए हिंदी समाचार पत्रों को देखना और पढ़ना बहुत ही सहायक है । सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के साथ प्रेरणा, आत्मविश्वास, राष्ट्रीय एकता और संस्कृतियों के प्रचार-प्रसार तथा इसके एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी और आगे की पीढ़ियों को सिंचित करने का एक बड़ा माध्यम रहा है हिंदी पत्रकारिता। गुलाम भारत में हिंदी पत्रकारिता ने जिस तरह से स्वतंत्रता सेनानियों को सूचना देने और अंग्रेजों के खिलाफ और भारत को स्वाधीन करने के लिए जिस प्रकार से करती थी वह आज के तमाम सोशल मीडिया माध्यम से कहीं कम तेज नहीं थी । आज हम जिसे हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाते हैं वह उस समय की स्वाधीनता की पत्रकारिता थी । पत्रकार अपने समकालीन समाज का शिक्षक, सेवक और सरकार का आलोचक होता है । ये दोनों कार्य हिंदी पट्टी की पत्रकार और हिंदी पत्रकारिता से कोई सीख सकता है । उस समय का पत्रकार खुद जलकर दूसरों को मार्ग दर्शाता था, सूचना का संकलन, प्रकाशन और वितरण करता था । आज हम जिस हिंदुस्तान की विशाल लोकतंत्र के नागरिक हैं उसकी मजबूत आधारशिला के निर्माण में हिंदी पत्रकारिता की महत्त्वपूर्ण भूमिका है ।