Friday 22 May 2015

लोकशक्ति और सोशल मीडिया: 21वीं सदी का एक सार्थक हस्तक्षेप



21वीं सदी में सोशल मीडिया लोकशक्ति का एक परिचायक बनकर उभरा है। लोकशक्ति के रूप में सोशल मीडिया एक ऐसा पहला मीडिया है, जिसने पारंपरिक मीडिया के एकाधिकार एवं प्रभुत्व को तोड़ कर मीडिया का लोकतांत्रिकरण किया है। इसने प्रत्येक व्यक्ति को ख़बरों के उत्पादन, संपादन और वितरण की शक्ति प्रदान की है। लोक यानी जनता जो पहले सिर्फ दर्शक या उपभोक्ता हुआ करती थी। सोशल मीडिया राजनैतिक, मार्केटिंग, जनसंपर्क और व्यवसायिकता के क्षेत्र को प्रभावित किया है। आज विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनियां सोशल मीडिया और इंटरनेट के सहारे लोक जीवन को प्रभावित कर रही हैं और इनके कारण विकास की नई नीतियां सरकार द्वारा सामने आ रही हैं। लेकिन सदियों से लोक गायब रहा है। लोकशक्ति की मांग लोकतंत्र के सार्थक और विस्तार का स्वाभाविक चरण है। इसमें लोक यानी जनता द्वारा सोशल मीडिया के आधुनिक नेटवर्किंग साइट्स जैसे फेसबुक, टिवटर, यू-ट्यूब आदि का प्रयोग कर लोकशक्ति को अर्जित किया जा सकता है।        

लेकिन सोशल मीडिया लोकशक्ति को एक सार्थक दिशा कब देगा? क्या लोक जीवन सिर्फ वोट बैंक के रूप में पहले की भांति इस्तेमाल होते रहेंगे या लोकाधिकारों को हासिल करने के लिए सोशल मीडिया जैसे सशक्त हथियार के साथ सड़क पर भी निकलेंगे। 21वीं सदी में लोकशक्ति अर्जित करने की दिशा में सोशल मीडिया का सार्थक हस्तक्षेप अरब स्प्रिंग, सीरिया, मिस्र की लोटस क्रांति, अन्ना आंदोलन और दिल्ली विधान सभा चुनाव देखा जा चुका है। मैकचेस्नी का कहना है कि इंटरनेट सार्वजनिक वस्तु है और यह सामाजिक विकास के लिए आदर्श माध्यम है। यह अभाव को ख़त्म करता और उसे लोकतंत्र के हवाले कर देना चाहिए।