योग
से ही जीवन है
शम्भू
शरण गुप्त
शोध
छात्र- पीएच. डी. (जनसंचार)
संचार
एवं मीडिया अध्ययन केंद्र
महात्मा
गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)
योग समग्र जीवन का एक ऐसा विज्ञान है जिसका
हजारों साल से भारत के इतिहास में अपना एक अमूल्य स्थान है। यह मानव जीवन से भिन्न
और पृथक नहीं है बल्कि यह मानव जीवन का अभिन्न अंग है। यह हमारे समग्र जीवन की
क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करता है। योग एक लक्ष्य है और इसके लिए संपादित
की जाने वाली विभिन्न क्रियाएं साधन मात्र है। यह सहज-स्वाभाविक क्रमिक विकास की
प्रक्रिया है, जिसे हम योग कहते हैं। योग चमत्कार दिखाने
की वस्तु नहीं, बल्कि मानव की बौद्धिक और शारीरिक क्षमताओं
का वह मापदंड है जो विकट और अव्यक्त ब्रह्मस्वरूप तक पहुंचने की दिशा में उसकी
जीवन-प्रणाली के रूप में अभिव्यक्त होता है। योग करने से शरीर और मन का संतुलन बना
रहता है। योग से मन, बुद्धि और जीवन को रोगमुक्त रखा जाता है
जिससे मानसिक शांति और शारीरिक बल मिलता है।
योग आत्मिक, मानसिक और शारीरिक संतुलन को बनाए रखने में सहायक है। आल इंडिया मेडिकल
इंस्टीट्यूट के प्रख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. एच. एस. वसीर ने योग के वैज्ञानिक
पहलू को अत्यंत रहस्यमय बताते हुए कहा है कि “विज्ञान मस्तिष्क, मन और शरीर के आंतरिक अंगों की जानकारी हासिल करता है। योग जीवन को
स्वस्थ और सुखमय बनाने का वह सूत्र है जो जीवन को संतुलित बनाता है। जीवन की सुखमय
यात्रा करने का मार्ग प्रशस्त करता है। शरीर जब व्याधिग्रस्त होता है, तब दावा लेने से नई व्याधि का भी जन्म होता है। जीवन के बाह्य शत्रुओं के
प्रति तो हम सतर्क रहते है; किन्तु अपने भीतर के शत्रुओं के
प्रति नहीं, जो हमारी जीवन-शक्ति को नष्ट करते है।”
डॉ. एन. आर. मित्रा विज्ञान, मानव और योग को लेकर हुए कुछ शोध कार्यों के आधार पर कहते हैं कि – “जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानवजाति एवं योग के बीच संबंध को दर्शाते है।
जैसा कि आप जानते है योग एक अति प्राचीन विज्ञान है, और
पूर्व में यह एक गुप्त विद्या भी थी। किन्तु अब यह विज्ञान गुप्त नहीं है। आज
शास्त्र और विज्ञान सम्मत योग लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति करने वाला बन गया है।
लोगों की आकांक्षा एक मात्र यही है कि हम स्वस्थ रहें। मानसिक रूप से संपूर्ण
तनावों से मुक्त हो जाएँ और हृदय में सदा आनंद का अनुभव करें। यह आकांक्षा मात्र
कुछ व्यक्तियों की नहीं है, बल्कि मानव मात्र की है।”
हरियाणा के योग एवं आयुर्वेद के ब्रांड
एम्बेसडर बाबा रामदेव कहते हैं कि – “योग का किसी भी पुजा पद्धति, धर्म एवं संप्रदाय से कोई से कोई संबंध नहीं है। दुनिया के 177 देशों में
से 44 मुस्लिम देशो ने भी योग को स्वीकार कर चुके हैं।” जब योग की चर्चा होती है, तो महर्षि पतंजलि की चर्चा करना आवश्यक हो जाता है। महर्षि पतंजलि के
अनुसार मनुष्य के अंदर जितनी वृत्तियां हैं, उनका निरोध ही
योग है। साथ ही पतंजलि का अष्टांग योग सर्वश्रेष्ठ और व्यवहारिक माना गया है। हालांकि
डॉ. ज्ञान शंकर सहाय अपने ‘योग शास्त्र में चिकित्सात्मक
आधार’ नामक अध्याय में लिखते हैं कि पतंजलि के योग में जितनी
चर्चा मिलती है, उससे क्या यह नहीं पता चलता कि इस रोग को इस
प्रक्रिया से, इस अभ्यास से आप दूर कर सकते हैं और इस आधार
पर हमने फिर हठयोग में इसकी खोज प्रारंभ की। हठयोग प्रदीपिका, जो बहुत ही महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है, हठयोग का आधार
ग्रंथ माना जा सकता है, उसमें कुछ बातें ऐसी मिली जो एक दिशा
निर्देशक तत्व के रूप में काम कर रहीं थी, जिसके आधार पर यह
कहा जा सकता हैं कि हठयोग ने रोग निवारण की चर्चा की है,
स्पष्ट रूप से की है। उसमें एक श्लोक मिलता है –
युवा वृद्धोअतिवृद्धों वा व्याधितो
दुर्बलोअपी वा ।
अभ्यासात् सिद्धिमाप्नोति
सर्वयोगेष्वंतद्रित: ॥
कोई भी युवा या वृद्ध या अतिवृद्ध या
रोगजर्जर अभ्यास के द्वारा योग में प्रगति कर कर सकता है, उपलब्धि पा सकता है। अब जब यहाँ कहा गया कि एक बीमार आदमी भी योग के
अभ्यास से सिद्धि प्राप्त कर सकता है, तो निश्चित रूप से उस
सिद्धि से पहले उस अध्याय में उस रोग के निवारण की क्षमता भी होगी। और इस आधार पर
डॉ. सहाय ने फिर और खोज शुरू की और हठयोग प्रदीपिका में एक श्लोक और पाया –
‘अस्तु वा मास्तु वा
मुक्तिरत्रेवाखंडित सुखम् ॥1।68॥
चाहे मोक्ष मिले या न मिले, हठ योग के अभ्यास से इसी जगत में अखंड स्वास्थ्य पाना संभव है। जब तक कोई
व्यक्ति शारीरिक तौर पर स्वस्थ एवं रोगमुक्त न हो, वह जीवन
का आनंद भला कैसे उठा पाएगा? अतः यह दर्शाता है कि योग में
रोग निवारण की अत्यंत प्रभावशाली क्षमता निहित है। डॉ. सहाय लिखते हैं कि आसनों से
मात्र छः रोगों का निवारण हो सकता है, जबकि षट् क्रियाओं से
छब्बीस रोग ठीक हो सकते हैं। आठ प्रचलित प्राणायामों – सूर्यभेद, शीतकारी, उज्जायी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्छा, एवं प्लाविनी में से चार उज्जायी, शीतली, भस्त्रिका और सूर्यभेद अतिमहत्त्वपूर्ण हैं। इन विभिन्न अभ्यासों के
महत्त्वपूर्ण चिकित्सीय लाभ हैं। इसी प्रकार मुद्राएँ भी मानव जीवन में सकारात्मक
प्रभाव डालती हैं। जहाँ तक पूर्ण रोग निवारण का प्रश्न है,
प्राणायामों, मुद्राओं एवं षट् क्रियाओं के सापेक्ष, आसन उतने प्रभावशाली सिद्ध नहीं होते। धौति क्रिया से दस रोगों में लाभ
होता है और उनका निवारण भी संभव है। बस्ति क्रिया भी एक बहुत प्रभावशाली योगाभ्यास
है, इससे आठ रोग ठीक होते हैं।
आज के इस उपभोक्तावादी संस्कृति और भौतिक
संसार में मानव जीवन का इंद्रिय व्यापार में, मनस, बुद्धि, चित और अहंकार के संसार में अधिक लिप्त हो
जाता रहा है, जिस कारण आज के मानव जीवन को अनेक समस्याओं का
सामना करते हुए अनेक दुःख झेलना पड़ रहा है। ये कष्ट हमारे शरीर में असंतुलन के रूप
में, व्याधि के रूप में ‘Disease’ के
रूप में प्रकट होते हैं। ‘Disease’ शब्द बहुत ही महत्त्वपूर्ण
है। ‘Ease’ का अर्थ होता है आराम की अवस्था में होना। जब
मानव व्यक्तित्व के स्वाभाविक ‘Ease’ में व्यवधान उत्पन्न
होता है, तो यह व्यवधान ‘Disease’
कहलाता है। अतः व्याधि (Disease), चाहे वह शारीरिक हो, मानसिक हो, आध्यात्मिक हो या भावनाओं से जुड़ा हुआ हो, यह और कुछ नहीं बल्कि मानव की शारीरिक और मानसिक सरंचना में मानव
व्यक्तित्व में असामंजस्य की एक अवस्था है। इस व्याधि को निर्मूल करने में योग
बहुत ही सहायक औषधि के रूप में सदियों से भारतीय संस्कृति में विद्यमान है। इस
प्रकार योग मात्र कुछ आसनों या प्राणायामों; या बंधों या
मुद्राओं और क्रियाओं का समूह नहीं है। बल्कि यह जीवन-यापन की कला है, जिसके द्वारा हम अपने आप को परम सत्ता की ओर ले जा सकते हैं। इस योग
यात्रा की दिशा में अपनी चेतन शक्ति, मन और बुद्धि का
इस्तेमाल करना होता है। योग का मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि और मनोवैज्ञानिक व्यतक्तित्व पर भरपूर प्रभाव पड़ता है। यह उस
सृजनात्मकता के भी मार्ग खोल सकता है जिसकी अवश्यकता नए मूल्यों की पुनर्स्थापना
के लिए महसूस की जा रही है।
प्राचीन भारतीय समाज के संत-महापुरुष
अपने जीवन के सादगी और उच्च विचारों से ही दुनिया को दिशा दिखाते रहे हैं। इस तरह
के विचार पाश्चात्य देशों में भी अपनाए गए है। लेकिन तकनीकी और व्यावसायिक विकास
के विगत कुछ वर्षों में पूरी दुनिया में उथल-पुथल मचा दी है, जिससे जीवन मूल्यों की तरफ लोगों का ध्यान कम होता जा रहा है। यहीं कारण
है कि व्यक्ति अपने आप में अंतर्द्वन्द्व से घिरा हुआ है। जहां एक ओर हम समाज में
धन और सत्ता पाने की लालसा की प्रवृति को देख रहें हैं, वही
दूसरी ओर समाज का एक वर्ग इस धरातल से अत्यंत ही नीचे हैं,
और यह भिन्नता समाज में अशांति पैदा कर रही है। दुर्भाग्यवश आज दुनिया में उपलब्धियों
का मूल्यांकन धन एकत्र करना और दूसरे के ऊपर शक्ति के प्रयोग के रूप में लिया जा
रहा है। सामाजिक जीवन में व्याप्त विकारों और भिन्नताओं को जड़ से समाप्त करने के
लिए योग की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। योग के अनुभव और उसके व्यापक व्यावहार से
सदियों तक मानव जीवन में आत्म-सुख को प्राप्त किया जा सकता है। योग के शारीरिक, बौद्धिक और सामाजिक लाभ के वैज्ञानिक प्रमाण भी मिले हैं।
प्रोफेसर लाला इंदुभूषण, (मनोविज्ञान) भागलपुर विश्वविद्यालय का कहना है कि – मानसिक स्वास्थ्य या
व्यक्तित्व परिमार्जन का सबसे मान्य और व्यापक सिद्धांत मानते हुए आसक्ति-अनासक्ति
का सिद्धांत की चर्चा पर ज़ोर देते हैं। आसक्ति की अधिकता से व्यक्ति में राग, द्वेष और अहंकार होने के कारण व्यक्ति के अंदर चिंता, भय, आशंका और मनो शारीरिक व्याधियाँ आदि बनी रहती
हैं। इन सब रोगों से छुटकारा पाने के लिए आसक्ति की मात्रा को घटाना होता है। योग
में आसक्ति को घटाने के उपाय हैं। यौगिक क्रियाएँ हैं जिंकके अभ्यास से आसक्ति
स्वतः घटती है और अनासक्ति की भावना विकसित होती है। यह अनासक्ति संभव का विकास
करती है, स्नेह का विस्तार करती है,
अहंकार शून्यता पैदा करती है; मानसिक शांति और आनंद का अनुभव
कराती है। आज पूरी दुनिया में, जहां चारो ओर अशांति है, इसकी महत्ता और भी बढ़ती जा रही है।
आज हमारे देश में सबसे अधिक युवा वर्ग है, वह भ्रमित हो रहा है। ऐसे युवा वर्ग को, जो इस देश
भावी कर्णधार हैं, मार्गदर्शन की आवश्यकता है, जो विश्व योग दिवस के द्वारा संभव हो सकता है। भारत द्वारा प्रस्तावित
विश्व योग दिवस को पूरी दुनिया द्वारा समर्थन और मान्यता प्राप्त करना वर्तमान में
अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह भारत के लिए बहुत ही गौरव की बात है कि आज भारत एक नए
अंदाज में विश्व योग दिवस के माध्यम से योग का संदेश देते हुए पूरे विश्व के
अंधकारमय जीवन में प्रकाश लाने का काम कर रहा है। महर्षि अरविंद और सत्यानंद ने
कहा है – “योग आने वाले कल की संस्कृति है।” स्वामी सत्यानंद जी की भविष्यवाणी –
“मैं स्पष्ट रूप से देख रहा हूँ कि आने वाले कल में योग एक महाशक्ति के रूप में
उभरेगा तथा विश्व की घटनाओं को प्रभावित करेगा; और उन्हें
नया मोड देगा।” आज सच सावित हो रहा है। आज का युग योग के पुनर्जागरण का युग है। लेकिन
आज सारे संसार में हिंसा की लहर चल रही है। लोग हर दृष्टि से टूटते चले जा रहे
हैं। टूटे हुए लोगों से जोड़ने का काम नहीं होने वाला है। मानसिक तनाव के साथ ही
तरह-तरह की शारीरिक व्याधियाँ भी फैलती जा रही है। इस लिए शारीरिक-मानसिक तनावों
और व्याधियों की मुक्ति के लिए एक मात्र उपाय योग है। योग द्वारा अनेक लाईलाज
बीमारियों का सहज ही उपचार हो जाता है। मानसिक रोगियों को सामान्य बनाना, चेतन, अर्धचेतन और अचेतन मन से ऊपर एक चेतन है जिसे
योग के माध्यम से जगाया जा सकता है।
अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर
पर संचालित हो रहे योग विद्यापीठों, संस्थाओं, प्रशिक्षण केंद्रों के संचालकों के अनुभव बताते हैं कि ‘आधुनिक जीवन पद्धति में मनुष्य अपने मन, बुद्धि, भावना, विचार आदि पर जब तक नियंत्रण नहीं कर पाता, तब तक शारीरिक रोगों से मुक्ति और सुख-आनंद की प्राप्ति नहीं कर सकता। आप
आसन, प्राणायाम, योग, निद्रा, ध्यान का अभ्यास करें तो एड्स तक से मुक्ति
मिल सकती है। लंदन स्थित स्वामी सत्यानंद योग विद्यालय की संचालिका स्वामी
प्रज्ञामूर्ति ने एड्स रोग से मुक्ति दिलाने में योग का प्रयोग कर सफलता प्राप्त
कर चुकी है। वे कहती हैं कि दवाओं से रोगों को दबा दिया जाता है। एड्स जैसे अनेक
रोगों का इलाज आधुनिक चिकित्सा पद्धति में नहीं है; मगर
पवनमुक्तासन, प्राणायाम, योगनिद्रा, ध्यान आदि का अभ्यास करें तो अनेक असाध्य रोगों पर नियंत्रण पाया जा सकता
है।
निष्कर्ष रूप में हम यह
कह सकते हैं कि योग मंत्रोच्चार करने, या चमत्कार दिखाने की विधि नहीं है, बल्कि योग विज्ञान एक ऐसी पद्धति है जो एक ऐसे ब्रह्मास्त्र की तरह मानव
जीवन को समृद्ध और शक्ति प्रदान करता है कि जिससे असंतुलित जीवन पद्धतियों का
अस्तित्व समाप्त हो सकता है, और अर्जुन की तरह अपने में
सकारात्मक भाव पैदाकर लौह मार्ग पर आगे बढ़ते हुए स्वस्थ जीवन की लोक मंगल यात्रा
को और सुखमय बना सकता है। योग विश्व के सभी लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण है। योग
तकनीक से स्वस्थ होने की और अंदर से प्रसन्न होने की वृत्ति का निर्माण होता है।
योग से तनाव और चिंता से मुक्त करवाने का कार्य करता है। वर्तमान में तनाव के कारण
कमजोरी, क्रोध, ईर्ष्या और अन्य पैदा
हो रही नकारात्मक भावनाओं को रोकने के लिए योग संपूर्ण मानव जीवन के लिए हितकर है।