Tuesday, 3 November 2015

कार्पोरेट जनसंपर्क का परिदृश्य और सूचना संचार प्रौद्योगिकी 
 शम्भू शरण गुप्त
 शोध अध्येता  – जनसंचार
संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा






शोध सार
वर्तमान सदी में सूचना संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बड़ी तेजी के साथ विकास हुआ है। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर, एंड्रायड, इंटरनेट एवं फाइबर आप्टिकल केबल सूचना संचार प्रौद्योगिकी के प्रमुख अवयव हैं। सूचना संचार प्रौद्यौगिकी के ये अवयव बड़े शहरों के लोगों को जोड़ चुके हैं तथा अब ये छोटे-छोटे कस्बों और गांवों को जोड़ने में लगे हुए हैं। यानि इसका संबंध आम जनता से है। यदि हम किसी कंपनी, ग्राहक और उत्पाद के बारे में सूचना संचार प्रौद्यौगिकी की उपयोगिता की परिचर्चा करते हैं तो कार्पोरेट जनसंपर्क के परिदृश्य पर चर्चा होना लाजिमी है। कंपनी के विभिन्न कार्यों को संपादित करने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आंतरिक और बाह्य जनता (Publics) से लगातार संपर्क बनाए रखना पड़ता है। जैसे किसी उत्पाद का संबंध प्रत्यक्ष रूप से ग्राहक से होता है और ग्राहक आम जनता ही है तथा शुरू से वस्तु (उत्पाद) एवं उपभोक्ता का संबंध गर्भ और नाल की तरह है। आज उत्पाद और कंपनियों की संख्या में भारी वृद्धि होने से प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ चुकी है कि कंपनियां वस्तु उत्पादन, वितरण और विभिन्न प्रकार की संचार प्रक्रिया के लिए कार्पोरेट जनसंपर्क नामक इकाई की सेवाएं ले रही हैं। जिस प्रकार सूचना मानव जीवन के लिए की महत्त्वपूर्ण है, उसी तरह कंपनियों की संचार संबंधी क्रिया-प्रक्रिया का काम करने वाली एक महत्त्वपूर्ण इकाई कार्पोरेट जनसंपर्क है। “सोशल मीडिया के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि – सोशल मीडिया के 3D (Democratic, Demography और Demand) उपभोक्ता और कंपनी दोनों के लिए एक उत्प्रेरक का कार्य कर रहा है।”[1] सोशल मीडिया पर जन-शक्ति का प्रत्यक्ष लाभ कार्पोरेट जनसंपर्क के माध्यम से कंपनियां ही उठा रही हैं। क्योंकि जनसंपर्क में दो तत्व जन के लिए सूचना और जन से संपर्क सदैव रहता है। सूचना संचार प्रौद्यौगिकी तकनीक और सोशल मीडिया की जन-शक्ति कार्पोरेट जनसंपर्क को व्यापक बनाने में मदद कर रहा है। लेकिन यह एक दीर्घकालिक कार्य है।       
किसी भी पब्लिक (Public) को सूचना देना या उसके अभिमत को जानना कार्पोरेट जनसंपर्क का कार्य होता है। रेडियो, सिनेमा, पत्र-पत्रिकाएँ, टेलीविजन, स्मार्ट मोबाइल फोन, इंटरनेट, न्यू मीडिया और सोशल मीडिया आदि जनसंपर्क के उपकरण हैं। इनके मजबूत होने के साथ कार्पोरेट जनसंपर्क की शक्ति और क्षमता में भी बदलाव हुए हैं। आज व्यवसाय और व्यापार, शिक्षा-व्यवस्था, लोकतंत्र, उद्योग, फैशन, यातायात और पर्यटन उद्योग आदि क्षेत्रों में सूचना संचार प्रौद्यौगिकी आधारित कार्पोरेट जनसंपर्कीय प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जा रहा है।
सूचना संचार प्रौद्योगिकी से आशय:
सूचना संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का तात्पर्य सूचना-संप्रेषण की तकनीकों के समुच्चय से है। सूचना प्रौद्योगिकी के आधुनिक युग का सूत्रपात 19वीं शताब्दी के टेलीग्राफ के आविष्कार के साथ हो गया था। ढ़ोल पीट-पीट कर और कबूतर उड़ाकर संदेश भेजने के पुराने पारंपरिक तरीकों से शुरू हुआ सूचना संप्रेषण का काम आज अपने विकास के चरम शिखर पर पहुँच चुका है। रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेलीफोन, सेल्यूलर फोन, फैक्स, कंप्यूटर, दूरसंचार उपग्रह, टेलीविजन, इंटरनेट, विडियो फोन, मल्टीमीडिया इत्यादि ने इस प्रौद्योगिकी को क्रांतिकारी स्वरूप प्रदान किया है। इन सबमें कंप्यूटर की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। कंप्यूटर के बिना सूचना प्रौद्योगिकी के वर्तमान स्वरूप की कल्पना बेमानी है। आधुनिक युग में सामाजिक परिवर्तनों का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक प्रोद्योगिकी ही है। सूचना संचार प्रौद्योगिकी एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ प्रतिदिन नए आविष्कार होते रहते हैं। संचार माध्यम सूचना प्रौद्योगिकी से शक्ति प्राप्त कर समाज को सूचनाएं, मनोरंजन देने के साथ उन्हें मजबूती भी प्रदान कर रहा है।
अमेरिकी रिपोर्ट में सूचना प्रौद्योगिकी इस प्रकार परिभाषित है - सूचना प्रौद्योगिकी का अर्थ है, सूचना का एकत्रीकरण, भंडारण, प्रोसेसिंग, प्रसार और प्रयोग। यह केवल हार्डवेयर अथवा सॉफ़्टवेयर तक ही सीमित नहीं है। बल्कि इस प्रौद्योगिकी के लिए मनुष्य की महत्ता और उसके द्वारा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करना, इन विकल्पों के निर्माण में निहित मूल्य, यह निर्णय लेने के लिए प्रयुक्त मानदंड है कि क्या मानव इस प्रौद्योगिकी को नियंत्रित कर रहा है। और इससे उसका ज्ञान संवर्धन रहा है।
यूनेस्को के अनुसार सूचना प्रौद्योगिकी की परिभाषा - सूचना प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकीय और इंजीनियरिंग विषय है। सूचना की प्रोसेसिंग और उसके अनुप्रयोग की प्रबंध तकनीकें है। कंप्यूटर, मानव तथा मशीन के साथ अंत:क्रिया एवं संबद्ध सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक विषय।
सूचना संचार प्रौद्योगिकी का अभिप्राय यह है कि “विशेष रूप से दूरसंचार, संगणन (कम्प्यूटिंग) और प्रसारण के बीच के विभाजन प्रोद्योगिकी के स्तर पर ख़त्म हो चुके हैं और इसे डिजिटल प्रौद्योगिकी ने संभव बनाया है। इस तरह, पहले जो संचार के परस्पर भिन्न रूप थे, उनके वितरण और प्रेषण परस्पर मिल गए हैं और अब उनका एक ही रूप तथा प्रारूप होना संभव है। हालांकि यह संचार प्रौद्योगिकी की एक महत्त्वपूर्ण तथा संभावित रूप से क्रांतिकारी विशेषता है, फिर भी परस्पर जुड़ाव या आपसी मिलन का यह पहलू अब तक कम ही प्रकट हुआ है। इससे ज्यादा खुलकर उन विशाल विश्व कंपनियों का आपसी मिलन सामने आया है जो उस सांस्कृतिक सामग्री के अधिकांश हिस्से का उत्पादन तथा आपूर्ति करती हैं और जो उसे उस प्रतीकात्मक परिदृश्य को बनाती है, जिसमें हममें से ज्यादातर लोग बसते हैं।”[2]
कार्पोरेट जनसंपर्क:
            वर्तमान सूचना और मीडिया क्रांति के युग में विभिन्न तरह की सूचनाओं का प्रबंधन एक चुनौती भरा कार्य है। सूचनाओं को विभिन्न तकनीकी माध्यमों के सहारे विशिष्ट जनता तक पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है। इसी उद्देश्य से कार्पोरेट संस्थानों में कार्पोरेट जनसंपर्क जैसे बहुआयामी विभाग की स्थापना की गई। कार्पोरेट जनसंपर्क सूचना का व्यवस्थित विज्ञान है और सूचनाओं को त्वरित गति से संकलित, व्यवस्थित करने और उसे वैश्विक स्वरूप देने में सूचना संचार प्रौद्यौगिकी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
आज यह विभाग सूचना प्रबंधन, छवि निर्माण, विपणन सहयोग, मीडिया संबंध और बहुआयामी जनसंपर्क जैसे अन्य बहुत कार्य संपादित कर रहा है। तेजी के साथ विकास कार्यों, प्रबंधन और जनसंपर्क कार्यों से जुड़ा हुआ कार्पोरेट जनसंपर्क एक अग्रणी विषय है। कार्पोरेट जनसंपर्क, परंपरागत जनसंपर्क कार्यों जैसे – सामान्य प्रचार-प्रसार, मीडिया संबंध से भिन्न तथा अपने कार्यशैली को व्यापक बनाते हुए इसके अंतर्गत छवि निर्माण, विपणन सहयोग, ईवेंट मैनेजमेंट, सामुदायिक संबंध, साहसिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेलकूद, वार्षिक रिपोर्ट, अप्रत्यक्ष रूप से उत्पाद या सेवा की प्रोन्नति, सृजन के साथ-साथ सूचना को स्थान, नवाचार गतिविधियां आदि कार्य शामिल हैं। पूंजी, मशीन, उत्पादन और बाजार के साथ-साथ विभिन्न जनता से सकारात्मक संबंध विकसित करना तथा उसका समर्थन प्राप्त कार्पोरेट जनसंपर्क का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है।
कार्पोरेट का शाब्दिक अर्थ है – निगमित, निगम संबंधी तथा राजविधि द्वारा गठित। कार्पोरेट शब्द समूह या संगठन को प्रतिध्वनित करता है जो व्यवसायिक गतिविधियों से जुड़ा होता है। कार्पोरेट शब्द लैटिन शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ होता है – बॉडी।
सूचना संचार प्रौद्यौगिकी और कार्पोरेट जनसंपर्क:
कार्पोरेट जनसंपर्क की परंपरागत और मैनुअल प्रक्रिया को कंप्यूटर, इंटरनेट, इंट्रानेट, एनिमेशन, ग्राफिक्स और मोबाइल के नए-नए एप्लीकेशन के साथ सबकुछ ऑनलाइन हो चुका है। सूचना प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में हुए विकास ने संचार एवं मीडिया क्रांति को जन्म दिया। पवन के. वर्मा की निम्नलिखित बातों से यह स्पष्ट होता है - “सोशल मीडिया में तेजी से हुई वृद्धि, जिसने तत्काल संपर्क किए जाने को वहाँ तक पहुँचा दिया जिसके बारे में एक दशक तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, जो इस अभूतपूर्व क्रांति में एक और आयाम जोड़ती है।”[3]
आज कार्पोरेट जनसंपर्क ने सोशल मीडिया को बड़े पैमाने पर एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं। फेसबुक, टि्वटर और गूगल प्लस जैसी सोशल वेबसाइट्स आम उपभोक्ता के लिए उत्पाद बनाने वाली कंपनियों की भी पहली पसंद है। ये कंपनियां अपने उत्पादों को यूजर्स तक पहुंचाने के लिए सोशल साइट्स का उपयोग कर रही हैं। 400 से अधिक कंपनियां ऐसी हैं जो B2B (Business to Business) और B2C (Business to Consumer) मार्केटिंग कर रही हैं। इनमें फेसबुक, टि्वटर, लिंक्डइन, पिंटरेस्ट और गूगल प्लस आदि सोशल साइट्स हैं। जिस तरह यूजर्स की पहली पसंद फेसबुक है, उसी तरह कंपनियों की भी पहली पसंद फेसबुक है।
उपरोक्त तथ्यों को बाजार के बारे में सूचना उपलब्ध कराने वाली कंपनी निल्सन की एक रिपोर्ट से और स्पष्ट तौर पर समझा जा सकता हैं – “इंटरनेट, मोबाइल टैबलेट तथा एप्लीकेशंस जैसी डिजिटल प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से कंपनियों के कारोबार में 20 अरब डॉलर वृद्धि की संभावना हैं। डिजिटल प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से स्थापित ब्रांडों के व्यवहार में गड़बड़ी आने, प्रचार व उपभोक्ताओं को बेहतर अनुभव प्रदान कर 20 अरब डॉलर बिक्री के अवसर हासिल किए जा सकते हैं।”[4]
उपभोक्ताओं से जुड़ने के लिए कार्पोरेट जनसंपर्क पारंपरिक प्रकार का भी मीडिया का इस्तेमाल करता है। पर आज सूचना प्रौद्योगिकी से चलने वाले बाजार आधारित व्यवसाय का ही भविष्य दिख रहा है। आज इंटरनेट के माध्यम से विश्व के किसी भी डिपार्ट्मेंटल स्टोर से खरीददारी करना पड़ोस की दुकान से सामान खरीदने से भी ज्यादा सरल हो गया है। इस प्रक्रिया को ई-शॉपिंग भी कहते हैं। विडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए कंपनियां दूरस्थ अधिकारियों के बीच मीटिंग कर रही हैं। उक्त तथ्यों को और स्पष्ट रूप से समझने के लिए निम्नलिखित पंक्तियां सहायक है - आज भारत का संचार नेटवर्क एशिया के विशालतम नेटवर्कों में से एक होना है। लम्बी दूरी के ट्रांसमिशन नेटवर्कों में 1.5 लाख किलोमीटर की रेडियो प्रणाली तथा एक लाख पच्चीस हजार किलोमीटर लम्बी फाइबर प्रणाली कार्यरत है। सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार मार्च, 2000 में भारत में इंटरनेट कनेक्शनों की कुल संख्या 9.42 लाख थी। भारतीय इंटरनेट एवं मोबाइल संघ (आईएएमएआई) के आकड़ों के अनुसार दिसंबर 2012 तक देश में इंटरनेट यूजर्स की कुल संख्या 15 करोड़ थी। इनमें 10.5 करोड़ यूजर्स शहरी और 4.5 करोड़ ग्रामीण इलाक़ों में हैं।[5] इंडिया मोबाइल लैंडस्केप 2013 अध्ययन के अनुसार देश में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 14.32 करोड़ थी। उसी अध्ययन के अनुसार देश में डेस्कटॉप या लैपटॉप, स्मार्ट टीवी या मोबाइल देता कनेक्शन के जरिए इंटरनेट एक्सेस करने वालों की संख्या 9.47 करोड़ थी।[6] नेटवर्किंग कंपनी सिस्को के विजुअल्स नेटवर्किंग इंडेक्स (VNI) के अनुसार भारत में 2017 तक इंटरनेट यूजर्स की संख्या बढ़कर 34.8 करोड़ हो जाएगी।[7] ‘बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के जारी रिपोर्ट के अनुसरर वर्ष 2018 तक देश में 55 करोड़ इंटरनेट यूजर्स होंगे जिसमें 28 करोड़ छोटे कस्बों एवं शहरों से होंगे।’[8]
सूचना संचार प्रौद्यौगिकी और उपभोक्ता:
उपभोक्ताओं के सामने बाजार अनेक रूपों में है और उत्पादों के चयन एक से अधिक विकल्प भी मौजूद है। व्यक्ति विशेष, संगठन और कंपनियां सूचना संचार प्रौद्यौगिकी का उपयोग करते हुए अपने विचार और उत्पाद के प्रति एक ओर यूजर्स की समझदारी का अध्ययन करते हैं तो दूसरी ओर उन्हें उत्प्रेरित भी करते हैं। उक्त बातों को निल्सन इंडिया के निम्नलिखित बातों से और स्पष्ट होता है - “भारतीय उपभोक्ताओं द्वारा की जाने वाली खरीददारी बहुत हद तक उनके नियंत्रण वाले कारकों से तय होती है। निल्सन इंडिया के कार्यकारी निदेशक एड्रियन टेरान ने कहा कि एफ़एमसीजी क्षेत्र में ही 80 फीसदी उपभोक्ता पहले से तय उत्पाद के बजाय कोई अन्य उत्पाद खरीदते हैं। आज खरीददारों के पास अधिक चयन का विकल्प है और उनके फैसले बाजार में होने वाली स्थितियों पर तय होते हैं। रिपोर्ट में आगे कहा कि विश्लेषण में पता चला है कि पाँच खंडों में आधे से ज्यादा खरीददारों ने खरीददारी से पहले इंटरनेट की मदद ली। ये क्षेत्र हैं एफएमसीजी, मूवी, ट्रैवल, वहाँ और ऋण।”[9] 
सामान्य सूचना के साथ-साथ ब्रांड की स्थिति को मजबूत करने में मीडिया का महत्त्वपूर्ण योगदान है। कार्पोरेट जनसंपर्क की छवि निर्माण और ब्रांड प्रमोशन की प्रभावशाली संचार के साथ जनता को उपभोक्ता बनाने पर ज्यादा ध्यान होता है। “फिलिप कॉटलर ने “हॉर्वर्ड बिजनेस रिव्यू” में, सफल विपनांकों प्रोत्साहित करने के लिए “मेगा मार्केटिंग” के महत्त्व का मूल्यांकन किया है। कॉटलर का कहना है विपणन रणनीति के चार तत्व –उत्पाद, मूल्य, स्थान तथा संबर्धन (प्रमोशन) के अतिरिक्त, उच्च अधिकारियों को अपनी शक्ति और जनसंपर्क का भी इस्तेमाल करना चाहिए।” [10] प्रेस के आरंभ के बाद आरंभिक वर्षों में सूचना देने की प्रवृति ही प्रमुख थी । बाद में 19वीं सदी के अंतिम दशक से ब्रांड के नाम से बताया जाने लगा । 20वीं सदी में मुक्त बाजार की प्रतिस्पर्धा का तेजी से विकास होने के साथ ही ब्रांड की बिक्री की संभावनाएं और तेज हो गईं। ऐसा दिखाई भी दे रहा है जैसा कि ब्रांड एक्सपर्ट हरीश बिजूर लिखते हैं कि “हम भारत के नागरिक पहले हैं और फिर हम बाजार के उपभोक्ता हैं। यह वास्तविकता है। आज के आधुनिक समाज में हम में से कोई भी ऐसा नहीं है कि जिसका जीवन बाजार द्वारा मुहैया चीजों के बिना चल जाए। गरीब और अमीर समान रूप से उस उपभोक्ता समाज में हिस्सेदार है, जो उत्पाद, सेवाएं और हर प्रकार के ब्रांड्स उपलब्ध करा रहा है।”[11]      
सूचना संचार तकनीक ने आज बाजार के स्वरूप को बदलते हुए उपभोक्ताओं को घर बैठे ऑनलाइन शॉपिंग जैसी सुविधाएं देकर भारी लाभ कमा रही हैं। ग्राहक भी भारी पैमाने पर ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे हैं। त्योहारों के अवसर पर कार्पोरेट जगत भारी छूट की सूचनाएं विभिन्न जनमाध्यमों के माध्यम से देती रहती हैं। कार्पोरेट जनसंपर्क विभाग उत्पादों में भारी छूट की सूचनाएं व्यक्तिगत तौर पर सूचनाएं देने के लिए आधुनिक मोबाइल, ई-मेल, फेसबुक, टि्वटर, यू-ट्यूब आदि का इस्तेमाल कर रहा है। यानि आज उपभोक्ताओं तक उत्पाद संबंधी सूचना देने के माध्यम भी बदल गए हैं। साथ ही खरीददारों के पास चयन के अधिक विकल्प भी हैं। ग्राहकों के उत्पाद खरीदने जैसी फैसले भी बाजार में होने वाली स्थितियों पर तय होने लगे हैं। अर्थात ग्राहक यह देखता है कि कौन सी कंपनी किस प्रकार की और कितनी फायदे की स्कीम दे रही है, उसके आधार पर ग्राहक, उत्पाद या ब्रांड्स को खरीदने की योजना में शामिल होता हैं। उपरोक्त कथन को कथाकार उदय प्रकाश की इन बातों से और स्पष्ट समझा जा सकता है - न सोचें कि सिर्फ नई अर्थव्यवस्था पैदा हुई है, टेक्नोलॉजी नयी आयी है। उसने बड़े पैमाने पर समाज को बदल डाला है। इंटरनेट है, मोबाइल है, आईपॉड है, कम्युनिकेशन (संप्रेषण) के दूसरे साधन हैं।[12] 
नवीनतम शोध-परिणामों पर आधारित सूचनाएं संप्रेषित करने से सोशल मीडिया का और महत्त्व बढ़ जाता है। वर्तमान में सोशल मीडिया का बहुत अधिक विस्तार हुआ है और इसका अपने उपभोक्ता वर्ग पर जोरदार प्रभाव भी पड़ा है। उपभोक्ता वर्ग के हक को पाने व बनाए रखने के लिए सोशल मीडिया उन्हें जागरूक भी कर रहा है। मनोरंजन, सूचना और शिक्षा इन तीन महत्त्वपूर्ण कार्यों के साथ संवेदनशील मुद्दों एवं जन-जागरूकता का निर्माण कार्य हो रहा है। जैसा की “पैनासोनिक इंडिया के प्रबंध निदेशक मनीष शर्मा ने कहा कि पैनासोनिक त्योहारों के दौरान प्रचार के लिए सभी उपलब्ध माध्यमों का अनुकूलम उपयोग कर रही है और सोशल मीडिया उसका जरूरी हिस्सा है। त्योहारों के दौरान हमरे विपणन बजट का महत्त्वपूर्ण हिस्सा डिजिटल प्रमोशन पर किया जा रहा है।”[13]
ई-ट्रेड का बढ़ता प्रचलन:
20वीं सदी में सूचना और संपर्क के क्षेत्र में अद्भुत प्रगति हुई है। इलेक्ट्रानिक माध्यम के फ़लस्वरूप विश्व का अधिकांश भाग जुड गया है। सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति ने ई-व्यवसाय का द्वार खोल दिया है। इलेक्ट्रानिक वाणिज्य के रूप में ई-कॉमर्स, इंटरनेट द्वारा ई-मेल द्वारा संभव हुआ है। ऑनलाईन सरकारी कामकाज विषयक ई-प्रशासन, ई-बैंकिंग द्वारा बैंक व्यवहार ऑनलाईन, शिक्षा सामग्री के लिए ई-एजुकेशन आदि माध्यम से सूचना प्रौद्योगिकी का विकास हो रहा है।पिछले साल 2014 में 450 करोड़ डॉलर का आंकड़ा ऑनलाइन शॉपिंग का भारत में था। गूगल के अनुमान के अनुसार वर्ष 2015 में भारतीय ई-कॉमर्स बाजार में करीब 1000 करोड़ डॉलर मूल्य की संभावना है। 2020 तक भारत में ऑनलाइन शॉपिंग करने वालों की संख्या बढ़कर 20 करोड़ से अधिक हो जाएगी।”[14]  एक बड़ा कारण है कि भारत जैसे देश में करीब 100 मिलियन इंटरनेट यूजर्स में से करीब 50 फीसदी लोग ऑनलाइन शॉपिंग करना पसंद करते हैं और इनकी संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। इस ट्रेड को ध्यान में रखते हुए कंपनियां वेब स्पेस में अपनी जगह बनाने पर अधिक फोकस कर रही हैं। जैसा कि उत्पाद बनाने वाली कंपनियों जैसे हिंदुस्तान यूनिलीवर इत्यादि के साथ मिलकर काम कर रही है, जिससे उनके उत्पादों के सैंपल देश भर में लाखों ग्राहकों तक पहुंचाकर उन्हें ऑनलाइन खरीदारी करने के लिए प्रेरित किया जा सके। गूगल का उद्देश्य 2018 तक 2 करोड़ लघु एवं मझोले कारोबारों को ऑनलाइन लाना है।
इस क्षेत्र में विभिन्न प्रयोगों का अनुसंधान करके जनसंपर्क भी तकनीकी रूप से समृद्ध और विकसित होता गया। सूचना प्रौद्योगिकी सूचना, सूचनाओं का प्रबंधन, आँकड़ों (डेटा) का संग्रह, ज्ञान और शिक्षा का आदान-प्रदान, सामाजिक व व्यवसायिक क्रिया के हर क्षेत्र में अपना स्थान बना चुका है। हमारी आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, व्यावसायिक तथ अन्य बहुत से क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी का विकास और हस्तक्षेप दिखाई पड़ रहा है। इलेक्ट्रानिक तथा डिजिटल उपकरणों की सहायता से इस क्षेत्र में निरंतर प्रयोग हो रहे है। इस नये युग में ई-कॉमर्स, ई-मेडिसिन, ई-एजुकेशन, ई-गवर्नंस, ई-बैंकिंग, ई-शॉपिंग आदि इलेक्ट्रानिक माध्यमों का विकास हुआ है। सूचना प्रौद्योगिकी आज शक्ति एवं विकास का प्रतीक बन चुकी है। कंप्यूटर युग के संचार साधनों में सूचना प्रौद्योगिकी के आगमन से हम सूचना-समाज में जी रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के आगमन से कार्पोरेट जनसंपर्क के क्षेत्र में सार्थक समृद्दि के साथ अधिकाधिक लाभ भी हुआ है।
इसके अलावा भारत में सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से होने वाले कारोबार जैसे- ई-कामर्स, ई-बैंकिंग, ई-गवर्नेंस आदि को कानूनी मान्यता देने के उद्देश्य से मई, 2000 में संसद द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी बिल पास किया गया। इस विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाने के बाद सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (एक्ट) – 2000 के अंतर्गत ई-मेल, ई-कामर्स, इलेक्ट्रानिक दस्तावेज तथा डिजिटल हस्ताक्षरों को वैधानिक दर्जा मिल चुका हैं। इस एक्ट के साथ ही भारत विधिवत ई-कामर्स और ई-गवर्नेंस को अंगीकर करने वाला विश्व का 12वाँ देश हो गया है।
निष्कर्ष :
सूचना तकनीक के विकास ने कार्पोरेट जनसंपर्क परिदृश्य की प्रकृति और प्रभावशीलता दोनों उन्नत हुई है। 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में जनमाध्यम लगातार विकसित होते गए और अमूर्त विचार को संचार माध्यमों के द्वारा बड़े पैमाने पर सरलता के साथ वैश्विक मूर्त रूप दिया जाने लगा। इन माध्यमों से किसी भी विषय-वस्तु को विस्तृत एवं चरणबद्ध तरीके से भी प्रस्तुत किया जा रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी अपने विकास के लंबे सफर के बाद आज इस मुकाम पहुँच गई है जहाँ इसके विस्तार के लिए दुनिया छोटी पड़ती जा रही है। अतिशयोक्ति नहीं है कि सूचना-क्रांति ने संपूर्ण विश्व को ग्लोबल विलेज के रूप में परिवर्तित कर दिया है। इस ग्लोबल विलेज के संबंध में आर्थर सी क्लार्क के शब्दों को यहाँ उद्धृत करना समीचीन होगा – रेडियो तरंगों के लिए देश की सीमा रेखाएं वैसे भी अस्पष्ट हो जाती हैं। पर एक बड़ा मुद्दा यह है कि - आने वाला कल का विश्व एक सीमा-बंधन से मुक्त विश्व होगा क्या?’ नि:संदेह संचार क्रांति के परिप्रेक्ष्य में कल की सीमा बंधन से मुक्त विश्व हमारे सामने है। आज टाटा, रिलाएंस, बिरला विप्रो, गोदरेज हिंदुस्तान युनिलीवर लिमिटेड, आइटीसी, एमवे जैसी कंपनियां दुनिया के कई देशों में एक साथ उत्पादन और व्यापार कर रही हैं। इनके व्यापार का आधार संचार पर ही निर्भर है। जिसको विस्तार देने में सूचना संचार प्रौद्यौगिकी की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। 
संदर्भ ग्रंथ:
1.        पाखी – (2011, फरवरी).
2.        रत्तू, कृष्ण कुमार.  “ नया मीडिया संसार”  
3.        वर्मा, पवन के. भारत का नया मध्य-वर्ग”  
4.        हिंदुस्तान. (2013, अगस्त 26). “हिट फिल्म का गणित”
5.        नवभारत (2013, नवम्बर 26). “डिजिटल प्रौद्यौगिकी से कंपनियों को 20 अरब डॉलर कारोबार की उम्मीद” 
6.        नवभारत (2014, सितंबर 22). “उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए कंपनियां कर रही “सोशल मीडिया का उपयोग”
7.        गोल्डिंग, पीटर. पूंजीवाद और सूचना का युग”.   
8.        योजना, दिसंबर 2015
9.        हिंदुस्तान, गोरखपुर, (2013, 09 सितंबर).  
10.     नवभारत टाइम्स हिंदी, मुंबई. (2013, 6 जून).
11.     लोकमत समाचार, नागपुर, (2015, 24 अप्रैल).
12.     रघु कृष्णन / बेंगलूरु September 20, 2015 http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=108560/26/10/15
13.      पाण्डेय, वंदना. (2013). “विशेषीकृत जनसंपर्क.” पंचकुला: हरियाणा ग्रंथ अकादमी.    
14.     भाटिया, तारेश. (2007). “आधुनिक विज्ञापन और जनसंपर्क” नई दिल्ली: तक्षशिला प्रकाशन.
15.     सेनगुप्ता, सैलेश. (2003). “जनसंपर्क एवं संचार प्रबंधन” जयपुर: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी.




[1] Facebook Head Quarters, California.
[2] गोल्डिंग,पीटर. पूंजीवाद और सूचना का युग: पृ. 98 
[3] पवन के. वर्मा भारत का नया मध्य-वर्ग पृ. 18
[4] नवभारत (2013, नवम्बर 26). “डिजिटल प्रौद्यौगिकी से कंपनियों को 20 अरब डॉलर कारोबार की उम्मीद” 
[5] योजना, दिसंबर 2015 पृ. 53  
[6] हिंदुस्तान हिंदी, गोरखपुर, 09 सितंबर, 2013
[7] नवभारत टाइम्स हिंदी, 6 जून 2013, मुंबई
[8] लोकमत समाचार, नागपुर, 24 अप्रैल 2015, पृ. 11
[9] नवभारत (2013, नवम्बर 26). “डिजिटल प्रौद्यौगिकी से कंपनियों को 20 अरब डॉलर कारोबार की उम्मीद” 
[10] सैलेश सेनगुप्ता, (2003). जनसंपर्क एवं संचार प्रबंधन. पृ. 169.
[11] दैनिक भास्कर (2015, मई 11). “क्या है आपकी ऑन स्ट्रीट वैल्यू?”
[12] पाखी फरवरी, 2011, पृ. 60
[13] नवभारत (2014, सितंबर 22). “उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए कंपनियां कर रही सोशल मीडिया का उपयोग” 
[14] रघु कृष्णन / बेंगलूरु September 20, 2015 http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=108560/26/10/15

Sunday, 1 November 2015

"भारतीय सिनेमा में आर्थिक समाजवाद"

सिनेमा समाज का दर्पण है! सच है कि सिनेमा के निर्माण में समाज से जुड़े अनेक घटनाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, साथ ही साथ समाज की घटनाओं को आधार बनाकर सिनेमा मनोरंजन और सूचना के लिए सिनेमा बनाया और दिखाया भी जाता है। ऐसे सिनेमा निर्माता, निर्देशक और अभिनेता और अन्य जुड़े लोग क्या, कभी उस समाज के बारे में भी कुछ सोचते हैं या नहीं, यदि सोचते है तो किस रूप? या सिर्फ सिनेमा के विषय-वस्तु तक ही रह जाते हैं या समाज उसी हाल में पीछे ही छुट जाता है, या उस विषय विशेष के आधार पर सिनेमा निर्माता, अभिनेता, अभिनेत्री जीवंत किरदार के साथ अनेक पुरस्कार, मेडल प्राप्त कर लेते हैं। वह समाज और उस समाज के लोग अपने आप को कहाँ पाते हैं? उस समाज के लोग, वह गांव, शहर, किसान, दुकान, खेत-खलिहान अपने आपको कहाँ खड़ा पाते हैं? आदि के बारे कुछ पड़ताल किया गया है इस शोध आलेख में......