हिंदी
का विकास और वैश्विक पटल
डॉ.
शम्भू शरण गुप्त,
असिस्टेंट प्रोफेसर,
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग,
टेक्निया इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज़
(संबद्ध गुरु गोबिन्द सिंह इंद्र प्रस्थ विश्वविद्यालय)
मधुबन चौक, रोहिणी, नई
दिल्ली
E mail: naharguptass@gmail.com
वैश्विक पटल पर हिंदी भाषा के विकास की
पड़ताल करें तो 20वीं सदी के अंतिम दो दशकों में अन्य किसी भाषा की अपेक्षा हिंदी
का वैश्विक विकास बहुत तेजी से हुआ है। प्रवासी भारतीय व अन्य जो हिंदी भाषा प्रेमी
हैं, कभी एक-एक रचना के लिए लालायित रहते थे। वे सूचना संचार तकनीक के माध्यम
से आज पूरा का पूरा महाग्रंथ न सिर्फ पढ़ रहे हैं बल्कि उस पर अपने सुझाव के साथ-साथ
अपने विचारों से भी अवगत कराते हुए हिंदी के विकास का वैश्विक पटल एहसास भी करा रहे
हैं। हिंदी का विकास हमारी रुचि और सजगता के साथ जुड़ा है। ऑनलाइन माध्यमों
वेबसाइट्स, ब्लॉग, एप्लीकेशन के साथ-साथ यू ट्यूब चैनल पर अतीत से लेकर वर्तमान के
हिंदी साहित्य को देखा, पढ़ा और सुना जा रहा है। दुनिया के अनेक राष्ट्रों अमेरिका, रूस, यूनाइटेड किंग्डम, इंग्लैंड, नेपाल, चीन, रूस, साऊथ अफ्रीका, त्रिनिनाद टू बैको और मारिशस आदि
देशों में इसके महत्त्व को स्वीकारी जा रही है। भारत की जनसंख्या 126 करोड़ है, जबकि विकसित देश जापान की 12.6 करोड़, जर्मनी की 8.2
करोड़ है, फ्रांस की 6.4 करोड़ है, साउथ
कोरिया की 4.9 करोड़ है। इन देशों का विकास अंग्रेजी में नहीं बल्कि उनकी अपनी जनभाषाओं
क्रमशः जापानी, जर्मनी, फ्रेंच और
कोरियन के द्वारा हुआ है। आज भले ही निजी स्वार्थों जैसे बाजार, सिनेमा, मीडिया और अपनी रुचि के आधार पर हिंदी का
स्थान वैश्विक पटल पर एक नए व विकासपरक आयामों को जन्म दे रही है, जो भारतीयों व हिंदी
प्रेमियों के लिए किसी गौरव से कम नहीं है। डॉ. अनिता ठक्कर की ‘राष्ट्रभाषा’ में अक्टूबर 2015 के अंक में सूचना
प्रौद्योगिकी में हिंदी नामक आलेख में उल्लिखित निम्न पंक्तियाँ हिंदी के विकास
में सार्थक है। – ‘अमेरिका से भारत दौरे पर आए माइक्रोसॉफ्ट
के प्रमुख बिल गेट्स ने मुंबई में कहा था कि भारत को हिंदी सॉफ्टवेयर की जरूरत है।
यह जरूरत पूरी करने के लिए माइक्रोसॉफ्ट तैयार है। एक वर्ष के अंदर ही सिर्फ हिंदी
ही नहीं बल्कि अन्य और भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर बाजार में आया और जिसमें पहली
बार हिंदी को कंप्यूटर तकनीक के साथ जोड़ते हुए हिंदी के महत्त्व को वैश्विक पटल पर
स्वीकार किया गया।’
वैश्विक पटल पर महात्मा गांधी
अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा भी हिंदी के विकास में
सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। हिंदी के विकास के लिए विश्वविद्यालय श्रीलंका,
हंगरी, जापान, बेल्जियम, इटली, जर्मनी, रूस, चीन और मारिशस आदि देशों के विश्वविद्यालय के साथ शैक्षणिक अनुबंध भी किया
है। इस विश्वविद्यालय में विदेशी छात्र-छात्राओं के लिए हिंदी भाषा में डिप्लोमा
से लेकर पीएच.डी. पाठ्यक्रम संचालित है। वर्ष 2016 के प्रारंभ तक इस विश्वविद्यालय
से ग्यारह देशों के कुल 131 जिनमें 86 महिला और 45 पुरुष विद्यार्थियों को हिंदी
भाषा की विभिन्न पाठ्यक्रमों में अध्ययन कर चुके हैं। आज कंप्यूटर, लैपटाप, स्मार्टवाच, स्मार्टफोन,
टैबलेट और मोबाइल आदि तकनीक से जुड़े उपकरणों की मानव जीवन में
निरंतर बढ़ती पैठ और इसे पूर्णतः व्यावहारिक स्तर पर लाने के लिए तकनीकी यंत्रों की
भाषा में हिंदी का एक स्थान सुनिश्चित हो चुका है। इससे आज हिंदी देश और काल की
सीमा से परे वैश्विक पटल को आत्मसात कर चुका है। जिस प्रकार से यूनिकोड ने हिंदी
भाषा को समूची दुनिया तक प्रसारित करने में मदद कर रहा है, ठीक उसी प्रकार सरकार
और हिंदी प्रेमियों को हिंदी के विकास के लिए अनवरत साधना करते रहने की जरूरत है। वैश्वीकरण ने
हिंदी को बाजार की भाषा का रूप दे दिया। बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादों को
बाजार में बेचने के लिए मीडिया में विज्ञापन, प्रचार आदि के लिए हिंदी का
प्रयोग करती है लेकिन इससे हिंदी भाषा की सुंदरता और स्वाभाविकता विकृत हो रही है
जो किसी भी रूप में हिंदी के लिए हितकर नहीं है। जबकि वहीं कंपनियां अपने सभी
कार्यालयीय कार्यों को भारत के ही हिंदी भाषा-भाषी प्रेमियों से अंग्रेजी में
संपादित कराती हैं। बाजार की भाषा हिंदी और दफ्तर की भाषा अंग्रेजी है। आखिर ऐसा
क्यों? बाजारवाद के युग में हिंदी भाषा पूरी दुनिया की एक
महत्त्वपूर्ण भाषा होने के नाते नहीं बल्कि बहुराष्ट्रीय कपनियों के लिए भारत में
इतने बड़े पैमाने पर उपभोक्ता होने के नाते हिंदी बाजार की भाषा बनी हुई है। क्या
हमारा देश भारत और इसके नागरिक और हिंदी सिर्फ बाजार की भाषा के लिए है, यह एक यक्ष प्रश्न है। इस संदर्भ में चेनाराम ‘वेबमीडिया
और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य’ में लिखते हैं कि – ‘भारत तक पहुंचने के लिए बड़ी से बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भी हिंदी और
भारतीय भाषाओं का सहारा लेनी पड़ी है। क्योंकि भारत एक ऐसा राष्ट्र है जिसमें बाजार
की प्रचुरता है और उत्पाद की बिक्री का आश्रय स्थल भी है और उस आश्रय स्थल में
हिंदी भाषा से ही शरण मिलती है। आगे लिखते हैं कि बाजारीकरण ने आर्थिक उदारीकरण,
सूचना क्रांति तथा जीवनशैली के वैश्वीकरण की स्थितियों से हिंदी
भाषा की अभिव्यक्ति कौशल का विकास ही हुआ है। अभिव्यक्ति कौशल के विकास का अर्थ
भाषा का विकास ही है।’
भाषा
के बारे में प्रख्यात साहित्य समालोचक टेरी ईगलटन कहते हैं कि ‘भाषा
सबसे पहले अन्य लोगों के साथ आपके अपने होने का माध्यम है। काम करा ले जाने का
माध्यम वह उसके बाद है।’ भाषा के महत्त्व को रेखांकित करते
हुए प्रो. चन्द्रकला पाडिया कहती हैं कि – ‘राष्ट्र निर्माण
में भाषा की क्या भूमिका हो सकती है। वह हमें चीन, जापान,
कोरिया जैसे देशों से सीखना चाहिए।’ आज सूचना
प्रौद्योगिकी के बहुत तकनीक जैसे याहू, गूगल, इंटरनेट एक्सप्लोरर, नेटस्केप, मोजिला, ओपेरा आदि इंटरनेट ब्राउज़र हिंदी में कार्य
कर रहे हैं। विज्ञापन, वेब, सिनेमा,
संगीत और बाजार के क्षेत्र में हिंदी भाषा का प्रयोग से इसका विकास
स्पष्ट होता है। संयुक्त अरब अमीरात का ‘हम एफ-एम’, जर्मनी का डॉयचे वेले, जापान का एनएचके वर्ल्ड,
चीन का चाइना रेडियो, अंतर्राष्ट्रीय बीबीसी
की भाषा हिंदी है। हिंदी इतने लोगों के साथ-साथ यह मीडिया की भी जीवन रेखा है। मीडिया
के लिए हिंदी भाषा बाजार, विज्ञापन और व्यवसाय की भाषा है। हिंदी
की सामर्थ्यता के बारे में बी.बी.सी. के भारत स्थित पूर्व प्रतिनिधि मार्क टूली ने
अप्रैल 26, 2009 को प्रभात खबर में लिखते हैं कि - ‘हिंदी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है, जबकि भारत में बमुश्किल से पांच फीसद लोग अंग्रेजी समझते हैं। यही पांच
फीसद लोग बाकी भाषा-भाषियों पर अपना प्रभुत्व जमाए हुए हैं। हिंदी और अन्य भारतीय
भाषाओं पर अंग्रेजी के इस दबदबे का कारण गुलाम मानसिकता तो है ही, उससे भी ज्यादा भारतीय विचार को लगातार दबाना और चंद कुलीनों के आधिपत्य
को बरकरार रखना है।’ यदि हम अपने जन्म-जन्मांतर से आगे और भारत
व उसके अस्मिता की सुरक्षा करने की बात करे तो हमें अपनी लघु मानसिकता और तुच्छ
लोभ से आगे निकलते हुए हिंदी को वैश्विक पटल पर बरकरार रखने के लिए तत्पर रहना
होगा तभी हम एक नए और विकसित भारत का नव-निर्माण कर सकते हैं जिसमें हिंदी का
स्थान वैश्विक पटल पर सर्वोच्च स्थान पर होगा।
संदर्भ ग्रंथ:
- चेनाराम, (2013). भूमंडलीकरण के दौर में संचार माध्यम और हिंदी भाषा. मिश्रा. मनीष कुमार. मन्ना, अनीता. और सिंह, आर. बी. (संपा.), वेबमीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य (55-64). नई दिल्ली: हिन्द-युग्म.
- ईगलटन, टेरी. (कृष्ण,प्रणय. अनु.). (2014). इंटरनेट ने हम सब की गति धीमी कर दी है. हरिवंश, (प्र. संपा.), प्रभात खबर (दीपावली विशेषांक 2014) (16). राँची: प्रभात खबर, कोकर.
- उमरे, करुणा. (2015, अक्टूबर). मीडिया में हिंदी. राष्ट्रभाषा.
- त्रिवेणी धारा (गृह पत्रिका).
- योजना 2007
- hindivishwa.org
No comments:
Post a Comment