Thursday 5 December 2013

आज कल जिस तरह से फेसबुक और दूसरी नेटवर्किंग साइट्स को लेकर हमारा युवा वर्ग इस कदर दीवाना और मस्ताया हुआ है कि आज एक तथाकथित पढ़े-लिखे वर्ग ने तो इसे एक तरह का जन-माध्यम ही मान लिया है। तो ऐसे हाल में मैं उन श्रीमानों से जानना चाहूँगा कि क्या वास्तव मे वे हमारे फेसबुक यूजर्स का मानसिक ओर बौद्धिक स्तर, सोचने-समझने ओर परिवेश के अवलोकन की क्षमता, फ़ेस बुक पर लिखे ओर अपलोड किए जाने वाले कन्टेन्ट की वस्तुनिष्ठता ओर सत्यता, जो की किसी भी मीडिया के होने का आधार होता है, को इस स्तर का पाते है कि इसे सोशल नेटवर्किंग साइट की जगह हम इसे सोशल मीडिया साइट का ही दर्जा दे दें या इसे हम उनके द्वारा पत्रकारिता के पहले पायदान की पाठशाला समझे।

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