आम नागरिक और फेक चुनावी खबरें
देश में चुनाव के दौरान मीडिया में पेड न्यूज़ (fake news) का आना एक आम बात होती है। इस पर सरकार कितना भी लगाम लगा ले लेकिन यह उतनी ही बढ़ती हुई नजर आती है। लेकिन क्या यह मीडिया आम जनता को अब ज्यादा दिनों तक ठग सकता है, शायद इसका उत्तर हो सकता है नहीं। क्योंकि आम आदमी के पास मीडिया का एक ऐसा वैश्विक माध्यम आ चुका है जिसके बदौलत वह सिर्फ खुद ही खबर नहीं पढ़ता है बल्कि स्वयं के अतिरिक्त औरों को भी खबर पढ़ने को देता है और तो और आज की प्रमुख धारा की मीडिया भी उससे खबर लेता है। बस जरूरत है सिर्फ आम आदमी को जागरूक और तकनीकी रूप से शिक्षित होने की। वैसे भी देखा जाए तो कंप्यूटर न सही लेकिन मोबाइल पर ही इंटरनेट के द्वारा यूजर्स की संख्या में दिन प्रति दिन वृद्धि हो रही है जिसका असर आज देश के विभिन्न पाँच राज्यों में हुए चुनाव में मतदान की प्रतिशत संख्या में वृद्धि आम जनता के सोच, विचार और उसके हक व दस्तूर के चाहत का ही सूचक लगता है। सोशल मीडिया जब धीरे-धीरे नागरिक पत्रकारिता का रूप पकड़ लेगी तो मीडिया की हालत में पलीता लग सकता है। वैसे तो आज मीडिया के पास ख़बरों को पाने के बहुत संसाधन व तकनीक है बावजूद उसके पास देश-प्रदेश और जिले के हर नुक्कड़ के खबर को कवर कर सके इसके लिए उसे अब एक मात्र रास्ता बचता है वह है सोशल मीडिया जिसका वह खबर के रूप में उपयोग भी कर रहा है। आप ने देखा ही होगा सोशल मीडिया ने कुछ ऐसे बड़े-बड़े कारनामें कर दिखाए है जो कभी स्वतंत्रता आंदोलन के समय में देश की प्रिन्ट पत्रकारिता किया करती थी। आज थोड़ी स्थिति बदल चुकी है, लगभग हर कोई भौतिकवाद का पोषक बन गया है यदि नहीं भी बना है तो उसके फालोवर ही इसके पोषक बने हुए है ऐसे वह खुद गाहे-बगाहें उसी की दुहाई करते हुए फिरता है। यह भी सत्य है कि आज कोई इससे कितना भी बचना चाहे बच नहीं सकता है लेकिन फिर भी हमें इसी में से एक रास्ता निकालना होगा जो लोकतंत्र और मीडिया दोनों के लिए सुखद और सार्थक समाज व देश का नवनिर्माण करेगी।
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