Sunday 25 October 2015

हिंदी के विकास एवं विस्तार  में मीडिया का योगदान
शम्भू शरण गुप्त
शोध अध्येता  - जनसंचार
संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यलय, वर्धा, महाराष्ट्र
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में भावों व विचारों के आदान-प्रदान के लिए माध्यम की अवश्यकता होती है। वह माध्यम मौखिक, लिखित व सांकेतिक किसी भी रूप में हो सकती है। यदि भाषा नहीं होती, तो समस्त मानव समाज पशु समाज की तरह मुक होता। इस संसार में सभ्यता और संस्कृति के विकास का मूल आधार भाषा ही है। भाषा अपने विशाल भाषिक एवं सामाजिक संस्कृति का प्रतिबिम्ब तथा राष्ट्रीय अस्मिता की प्रतीक होती है। भाषा एक प्रवाहमान नदी की जल की तरह है। हिंदी भाषा भारतीय संस्कृति की प्राण है जिसमें देश तथा काल की आत्मा मुखरित होती है। यह समाज और देश को सुंदर व एक व्यवस्थित जीवन प्रदान करती है। प्रौद्योगिकी के विकास के साथ विभिन्न बोलियों से मिलकर बनी हिंदी का भी अनेक रूपों में विकास और विस्तार हो रहा है।
तकनीकी विकास से मीडिया के सभी माध्यमों हिंदी मुद्रित माध्यमों व वेब संस्करणों, हिंदी टीवी चैनल, एफएम रेडियो, हिंदी सिनेमा और सोशल मीडिया के फेसबुक और टि्वटर के सकारात्मक भूमिका ने हिंदी क्षितिज का विस्तार और विकास किया है। जिस हिंदी भाषा ने पत्रकारिता के माध्यम से स्वाधीनता आंदोलन से लेकर देश को आजादी दिलाने में एक प्रबल वाहक के रूप में एक पाँव पर खड़ी रही, वही मीडिया इस हिंदी भाषा का प्रबल और विराट वाहक बनकर उसका वैश्विक विस्तार एवं विकास कर रहा है। लेकिन हिंदी के प्रति सामाजिक और राष्ट्रीय अनुराग का जो भाव उस समय हुआ करता था, वह आज नहीं दिखाई देता है।
हिंदी भाषा की उपादेयता नवमध्य वर्ग की भाषा है, बहुसंख्य लोगों की भाषा है, साहित्यकार और कवियों की भाषा है, सिनेमा की भाषा है, देश से प्रकाशित चोटी के दस अखबारों में से प्रथम तीन और दो क्रमशः छठवें व सातवें अखबारों की भाषा है और खबरिया व मनोरंजन चैनल की भाषा के रूप में है। संयुक्त अरब अमिरात का हम एफ-एम’, जर्मनी का डॉयचे वेले, जापान का एनएचके वर्ल्ड, चीन का चाइना रेडियो अंतर्राष्ट्रीय बीबीसी की भाषा है। हिंदी इतने लोगों के साथ-साथ यह मीडिया की जीवन रेखा भी है। बावजूद इसके मीडिया के लिए हिंदी बाजार, विज्ञापन और व्यवसाय की भाषा है। जबकि हिंदी मीडिया को व्यापारिक व बाजार विस्तार दोनों लाभ प्रदान करती है। वैश्वीकरण ने हिंदी को विस्तार तो दिया है परंतु अंग्रेजी ने जॉब के आधार पर मजबूत होने से हिंदी कमजोर हुई है।
मीडिया विज्ञापन कलात्मकता के सहारे उत्पाद विक्रय के लिए ग्राहकों को आकर्षित करता है। बाजारवाद के युग में हिंदी भाषा पूरी दुनिया की एक महत्त्वपूर्ण भाषा होने के नाते हिंदी भाषा में विज्ञापन का बाजार अधिक है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी अपने उत्पाद विक्रय के लिए हिंदी भाषा में विज्ञापन कर रही हैं। लेकिन इससे हिंदी भाषा की सुंदरता और स्वाभाविकता विकृत हो रही है जो किसी भी रूप में हिंदी के लिए हितकर नहीं है। बल्कि हिंदी भाषा को रोजगारपरक शिक्षा के रूप में राष्ट्रीय कार्य योजना में बिजनेस मॉडल के रूप में क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी मीडिया की अहम भूमिका है।
हिंदी भाषा उत्पादन, उपार्जन, ज्ञान-प्रधान समाज, लोक व्यवहार को समझने की, इन्नोवेशन एवं उद्यमिता की प्रवृत्ति की आवश्यकता एवं सिफारिशों की भाषा बननी चाहिए। यह सत्य भी है कि उत्तराधिकार में प्राप्त अंग्रेजी लघु स्तर पर ही संपन्न हो सकती है, लेकिन वृहद धरातल पर हिंदी की सरलता, सुंदरता, समाजिकता और संपन्नता ही काम आएगी। इसे सेवा भाव और राष्ट्रीय भावनाओं से पुनः एक बार और जोड़ने की जरूरत है।     
            सूचना संचार प्रौद्योगिकी ने मीडिया के माध्यम से आज पूरी दुनिया को आपस में जोड़ दिया है। दुनिया के किसी भी हिस्से में कोई घटना घटित होती है और पूरी दुनिया उसे मीडिया के द्वारा जान लेती है। आधुनिक तकनीकी विकास के फलस्वरूप मीडिया के सामाजिक ढांचे में गति उत्पन्न हुई है। इंटरनेट पूरी दुनिया में एक बड़ी उपलब्धि लेकर आयी है। जिसने देश और काल की सीमा को समाप्त करते हुए एक नेटवर्क से जोड़ दिया है। आज व्यापार, शिक्षा राजनीति और म्ननव जीवन के अनेक क्षेत्रों में बड़ी क्रांति हो रही है। कंप्यूटर के साथ मोबाइल फोन को जोड़ देने से ज्ञान का अथाह सागर हर वक्त मुट्ठी में रहता है। यूनिकोड के पदार्पण ने हिंदी भाषा को समूची दुनिया तक प्रसारित करने में मदद कर रहा है।
विदित है 20वीं सदी के अंतिम दो दशकों में अन्य किसी भाषा की अपेक्षा हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है। विज्ञापन, वेब, सिनेमा, संगीत और बाजार के क्षेत्र में हिंदी की मांग इसका विस्तार एवं विकास स्पष्ट होता है। हिंदी की सामर्थ्यता के बारे में बी.बी.सी. के भारत स्थित पूर्व प्रतिनिधि मार्क टूली ने अप्रैल 26, 2009 को प्रभात खबर में लिखा हैं कि - हिंदी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है, जबकि भारत में बमुश्किल से पांच फीसदी लोग अंग्रेजी समझते हैं। यही पांच फीसदी लोग बाकी भाषा-भाषियों पर अपना प्रभुत्व जमाए हुए हैं। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं पर अंग्रेजी के इस दबदबे का कारण गुलाम मानसिकता तो है ही, उससे भी ज्यादा भारतीय विचार को लगातार दबाना और चंद कुलीनों के आधिपत्य को बरकरार रखना है।

मीडिया ने हिंदी भाषा को वैश्विक भाषा के सिंहासन पर आसीन कर दिया है। मीडिया ने हिंदी को विविध रूपों में विकसित करने का सरहनीय प्रयास किया है। हिंदी अनेक रूपों में विकसित हुई है लेकिन अभी कुछ गंभीर चुनौतियां भी सामने हैं। वैश्विक बाजार के इस संक्रमण काल में हिंदी भाषा का विकास और विस्तार हुआ है परंतु इसके प्रयोग में भी मनमानी रवैया अपनायी जा रही है। हिंदी मात्र केवल बाजार की भाषा नहीं है, इसकी अपनी एक लंबी विरासत और परंपरा रही है। इसे अनेक महापुरुषों, समाज सुधारकों, चिंतक-मनीषियों और साहित्यकारों ने अपने खून-पसीने से इसे सींचा है। लेकिन अब हिंदी के विकास और विस्तार के कसौटी को रोजगार से जोड़ने की जरूरत है। इस भाषा के बोलने और जानने वालों की कमी नहीं है। रोजी-रोटी के साथ हिंदी भाषा के जुडते ही इसकी समृद्धता और बढ़ जाएगी और लोग खुद चलकर हिंदी सीखने और पढ़ने के लिए हिंदी शिक्षा केंद्रों की तरफ बढ़ेंगे जिस प्रकार बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पाद विक्रय के लिए भारत और हिंदी भाषा की ओर तेजी के साथ बढ़ी है।   

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